क्या विज्ञान आत्मा की ओर संकेत करता है?

आधुनिक विज्ञान और प्राचीन दर्शन के बीच का संवाद सदा से ही रोचक और चुनौतीपूर्ण रहा है। आत्मा, जिसे भारतीय दर्शन में “चेतना” या “आत्मिक सत्ता” कहा जाता है, आज भी विज्ञान के लिए एक रहस्य बनी हुई है। यह लेख उन वैज्ञानिक दृष्टिकोणों और शोधों को उजागर करता है, जो आत्मा के अस्तित्व की ओर इशारा करते हैं और भौतिकवाद की सीमाओं को चुनौती देते हैं।

इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है-

1. चेतना की कठिन समस्या – डेविड चैल्मर्स

डेविड चैल्मर्स ने चेतना की कठिन समस्या (Hard Problem of Consciousness) को विज्ञान और दर्शन का एक प्रमुख मुद्दा बनाया। उनका तर्क है कि यह समझाना असंभव है कि मस्तिष्क में चल रही न्यूरल प्रोसेसिंग कैसे हमारी अनुभूतियों और व्यक्तिगत अनुभवों को जन्म देती है। उदाहरण के लिए, जब हम एक सुगंध महसूस करते हैं, तो वह अनुभव मात्र न्यूरॉन्स की क्रिया से कैसे उत्पन्न होता है? यह प्रश्न इतना गहन है कि इसे अब तक कोई स्पष्ट उत्तर नहीं मिला।

David Chalmers (Cognitive Scientist)

भौतिकवादी दृष्टिकोण केवल मस्तिष्क की रासायनिक प्रक्रियाओं को देखता है, लेकिन चेतना की गहराई को समझने में विफल रहता है। चैल्मर्स का यह विचार इस पर जोर देता है कि चेतना का स्रोत मस्तिष्क के परे है। यदि भौतिकवाद सही होता, तो एक सुपरकंप्यूटर भी भावनाएं और अनुभव कर सकता, लेकिन यह अभी भी असंभव है।

“हाउ इज़ इट लाइक टू बी ए बैट?” का लेखक और पृष्ठभूमि

थॉमस नेगल (Thomas Nagel) 20वीं सदी के एक प्रमुख दार्शनिक हैं। नेगल का मुख्य कार्य चेतना और व्यक्तिगत अनुभवों की प्रकृति को समझने पर केंद्रित है। वे भौतिकवाद के कट्टर आलोचक हैं और मानते हैं कि भौतिक विज्ञान केवल मस्तिष्क की संरचना को समझा सकता है, लेकिन चेतना के अनुभवात्मक पहलुओं (subjective experiences) की व्याख्या करने में असमर्थ है। नेगल ने दर्शनशास्त्र, नैतिकता और चेतना के दर्शन में व्यापक योगदान दिया है। उनकी कृति “हाउ इज़ इट लाइक टू बी ए बैट?” चेतना की गहराई और उसकी भौतिकवाद से परे व्याख्या पर आधारित है।

Thomas Nagel (Philosopher of Mind)

निबंध का सारांश: “हाउ इज़ इट लाइक टू बी ए बैट?”

इस निबंध में नेगल ने चेतना की व्यक्तिपरकता (subjectivity) को समझाने के लिए चमगादड़ का उदाहरण दिया। उनका तर्क यह है कि चेतना का अनुभव व्यक्तिपरक होता है, यानी यह केवल उसी प्राणी को पूरी तरह से समझ में आ सकता है, जो उसे अनुभव कर रहा है। उदाहरण के लिए, एक इंसान यह समझ सकता है कि चमगादड़ ध्वनि-प्रतिध्वनि (echolocation) का उपयोग करता है, लेकिन यह अनुभव करना कि वास्तव में “चमगादड़ होने का अनुभव कैसा है,” एक इंसान के लिए असंभव है।

नेगल का मुख्य तर्क यह है:

  1. व्यक्तिपरक अनुभव का महत्व: हर प्राणी का अपना अनूठा अनुभव होता है, जिसे केवल वह प्राणी समझ सकता है।
  2. भौतिकवाद की सीमा: भौतिक विज्ञान केवल वस्तुनिष्ठ पहलुओं (objective aspects) को समझा सकता है, जैसे मस्तिष्क की संरचना, लेकिन यह अनुभवात्मक चेतना (phenomenal consciousness) की व्याख्या करने में असमर्थ है।
  3. अभौतिकता का संकेत: चूंकि चेतना की व्याख्या भौतिक दृष्टिकोण से नहीं की जा सकती, यह संकेत करता है कि चेतना भौतिक मस्तिष्क से स्वतंत्र कुछ हो सकती है।

कैसे आत्मा इस समस्या को हल कर सकती है?

नेगल का तर्क इस ओर संकेत करता है कि चेतना को समझने के लिए हमें भौतिकवाद से परे देखना होगा। चेतना के अनुभवात्मक पहलुओं को समझाने में आत्मा का विचार सहायक हो सकता है। यहाँ आत्मा के दृष्टिकोण से यह समस्या कैसे हल हो सकती है, इसका विवरण दिया गया है:

  1. चेतना का स्रोत आत्मा हो सकता है:
    आत्मा को चेतना का मूल स्रोत माना जाता है। यदि हम मानते हैं कि चेतना आत्मा का कार्य है, तो इसका अनुभवात्मक (subjective) पहलू समझ में आता है, क्योंकि आत्मा हर प्राणी में उसकी विशिष्ट प्रकृति के अनुसार कार्य करती है।
  2. व्यक्तिपरकता की व्याख्या:
    आत्मा हर जीव में अलग-अलग रूप से प्रकट होती है। चमगादड़ की आत्मा का कार्य उसकी शारीरिक संरचना और जीवनशैली के अनुरूप होता है, जिससे वह अपने अनुभवात्मक संसार को संचालित करता है। यह दृष्टिकोण नेगल के तर्क को पूरक बनाता है कि हर प्राणी का अनुभव अद्वितीय है।
  3. भौतिकवाद की सीमाओं का समाधान:
    नेगल ने भौतिकवाद की सीमाओं को उजागर किया, लेकिन आत्मा का विचार इन सीमाओं को पार करने में सक्षम है। आत्मा भौतिकता से परे एक चेतन तत्व है, जो अनुभव, भावनाओं और बोध के सभी पहलुओं को समाहित कर सकती है।

नेगल का यह निबंध विज्ञान और दर्शन के संगम को गहराई से समझने के लिए प्रेरित करता है।

2. स्प्लिट ब्रेन प्रयोग – माइकल गज़ानिगा

माइकल गज़ानिगा के स्प्लिट ब्रेन प्रयोग ने चेतना और मस्तिष्क के संबंधों को नई दृष्टि दी। इन प्रयोगों में पाया गया कि जब मस्तिष्क के दो गोलार्द्धों को अलग कर दिया जाता है, तो वे स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगते हैं। उदाहरण के लिए, यदि एक गोलार्द्ध को “सेब” दिखाया जाए और दूसरे को “संतरा,” तो व्यक्ति दोनों के बारे में अलग-अलग निर्णय लेता है।

Michael Gazzaniga (Neuro Scientist)

अगर भौतिकवाद सही होता तो हर किसी को लगता कि वह दो व्यक्ति है | लेकिन ऐसा नहीं होता | हर किसी को यही लगता है कि वह दो नहीं एक ही है | इसे न्यूरोसाइंस की भाषा में बंधन प्रॉब्लम कहा जाता है | इसके लिए माइकल ग़ज़्ज़ानिगा ने यह पुस्तक लिखी है Who is In Charge? जो इस और इंगित करता है कि एक आत्मा हो सकता है जो सभी अनुभवों को एक जगह संगठित करता है |

यह खोज दर्शाती है कि मस्तिष्क की संरचना चेतना को पूरी तरह परिभाषित नहीं कर सकती। चेतना की एकता केवल मस्तिष्क के माध्यम से समझाई नहीं जा सकती। यह इस ओर संकेत करता है कि आत्मा या चेतना एक स्वतंत्र सत्ता हो सकती है, जो मस्तिष्क की भौतिक सीमाओं से परे है।

3. न्यूरोसाइंस में Gaps और उभरती हुई गुणधर्म (Emergent Property) बनाम अविभाज्यता (Irreducibility)

न्यूरोसाइंस ने मस्तिष्क की संरचना और कार्यप्रणाली को बहुत हद तक समझा है, लेकिन चेतना को पूरी तरह से परिभाषित करने में असमर्थ रहा है। कुछ वैज्ञानिक चेतना को “उभरता हुआ गुण” (emergent property) मानते हैं, अर्थात यह मस्तिष्क की जटिल प्रक्रियाओं का परिणाम है। हालांकि, चेतना की अविभाज्यता (irreducibility) इस विचार को चुनौती देती है।

उदाहरण के लिए, एक कंप्यूटर में जटिल प्रक्रियाएं हो सकती हैं, लेकिन उसमें स्वयं का बोध (self-awareness) नहीं होता। चेतना केवल रासायनिक या जैविक प्रतिक्रियाओं का परिणाम नहीं हो सकती। यह भौतिकवादी दृष्टिकोण की एक गंभीर कमी को उजागर करता है।

4. निकट मृत्यु अनुभव (NDEs) – जेफरी लॉन्ग

निकट मृत्यु अनुभव (Near Death Experiences) वह घटनाएं हैं, जिनमें व्यक्ति मृत्यु के करीब होता है और शरीर से अलग होने का अनुभव करता है। डॉ. जेफरी लॉन्ग ने हजारों लोगों के NDEs का अध्ययन किया और पाया कि इनमें से अधिकांश अनुभव समान थे, जैसे शरीर के बाहर स्वयं को देखना, प्रकाश की ओर खिंचाव महसूस करना, और गहन शांति का अनुभव करना।

Dr Jeffrey Long (Neuro Scientist)

इनका यह रिसर्च पेपर है जो यह दिखाता है कि Near Death Experience एक वास्तविक घटना है और दिमाग का वहम नहीं है |

ये अनुभव दर्शाते हैं कि चेतना मस्तिष्क की गतिविधियों से परे है। यदि चेतना केवल भौतिक होती, तो मृत्यु के समय यह समाप्त हो जानी चाहिए थी। NDEs के अनुभव आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रमाण प्रदान करते हैं।

5. पुनर्जन्म अनुसंधान – इयान स्टीवेंसन और जिम टकर

पुनर्जन्म पर इयान स्टीवेंसन और जिम टकर का शोध आत्मा के अस्तित्व की पुष्टि करता है। इयान स्टीवेंसन ने उन बच्चों का अध्ययन किया, जिन्होंने अपने पिछले जन्मों की यादें साझा कीं। इन यादों में उन्होंने अपने पिछले परिवारों, घटनाओं और यहां तक कि मौत के तरीकों का उल्लेख किया।

Dr Ian Stevenson (University of Virginia)

इन्होने यह भी पाया की कई बच्चों के ठीक उस जगह पर चोट का निशान था जिस जगह के चोट की वजह से उनकी पिछले जन्म में मृत्यु हुई थी | अतएव यह कहना की उनकी याददाश्त बस तुक्के से हो गयी यह समीचीन नहीं जान पड़ता !

Dr Jim Tucker (University of Virginia)

जिम टकर ने इस शोध को आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आगे बढ़ाया और पाया कि इन मामलों में सटीकता का स्तर इतना ऊंचा था कि इसे संयोग मानना असंभव था। यह शोध दर्शाता है कि चेतना शरीर की मृत्यु के बाद भी मौजूद रहती है।

6. क्वांटम चेतना – स्टुअर्ट हैमरॉफ और रोजर पेनरोस

क्वांटम चेतना का सिद्धांत यह सुझाव देता है कि चेतना केवल मस्तिष्क की न्यूरॉन गतिविधियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह क्वांटम स्तर पर कार्य करती है। स्टुअर्ट हैमरॉफ और रोजर पेनरोस ने दावा किया कि मस्तिष्क में मौजूद माइक्रोटयूब्यूल संरचनाएं क्वांटम प्रभावों के माध्यम से चेतना को संचालित करती हैं।

Dr Stuart Hameroff (Neuro Scientist)

Roger Penrose (Mathematician)

इस सिद्धांत के अनुसार, चेतना एक बुनियादी क्वांटम प्रक्रिया है, जो भौतिकता और चेतना के बीच के अंतर को समाप्त करती है। यह विचार आत्मा के अस्तित्व और उसकी भौतिकता से परे शक्ति को प्रमाणित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

7. पैनसाइकिज्म (Panpsychism) – फिलिप गॉफ

पैनसाइकिज्म यह कहता है कि चेतना ब्रह्मांड के हर कण में मौजूद है। फिलिप गॉफ ने इसे एक मौलिक गुण के रूप में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, चेतना को ऊर्जा या द्रव्यमान की तरह समझा जा सकता है, जो ब्रह्मांड में हर जगह व्याप्त है।

Philip Goff (Philosopher of Mind)

यह विचार भारतीय दर्शन के “सर्वव्यापी आत्मा” के सिद्धांत से मेल खाता है। पैनसाइकिज्म आत्मा और चेतना को केवल भौतिकता तक सीमित मानने वालों के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है।

8. आत्मा का गणितीय मॉडल – बॉडी, माइंड और स्पिरिट शोध पत्र

एक शोध पत्र ने आत्मा का गणितीय मॉडल प्रस्तुत किया, जिसमें शरीर, मन और आत्मा के बीच के संबंधों को परिभाषित किया गया। इस मॉडल के अनुसार, आत्मा विज्ञान के विपरीत नहीं है बल्कि इसे शरीर और मन के तरह एक तीसरे डायमेंशन से समझा जा सकता है |

इस शोध में गणितीय समीकरणों का उपयोग करके दिखाया गया कि आत्मा शरीर और मन की सीमाओं से परे कार्य करती है। इसमें क्वांटम फिजिक्स के आधार पर आत्मा के लिए सात गणितीय मॉडल दिए गए हैं | यह मॉडल विज्ञान और आध्यात्म के बीच की खाई को पाटने का एक साहसिक प्रयास है और यह दर्शाता है कि चेतना को केवल मस्तिष्क की रासायनिक प्रक्रियाओं तक सीमित नहीं किया जा सकता।

9. भौतिकवाद का अंत – चार्ल्स टार्ट

चार्ल्स टार्ट ने “एंड ऑफ मैटेरियलिज्म” में यह तर्क दिया कि भौतिकवाद चेतना और आत्मा जैसे जटिल प्रश्नों का समाधान करने में विफल रहा है। उन्होंने ट्रांसपर्सनल अनुभवों, जैसे ध्यान, योग, और निकट मृत्यु अनुभव, को आत्मा के अस्तित्व के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किया।

Dr Charles Tart (Psychologist)

चार्ल्स टार्ट की पुस्तक “एंड ऑफ मैटेरियलिज्म” में उन्होंने भौतिकवाद के अंत और चेतना, आत्मा, और ट्रांसपर्सनल अनुभवों के समर्थन में कई गहन और वैज्ञानिक तर्क दिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भौतिकवाद की सीमाएं हमें वास्तविकता के गहरे प्रश्नों, जैसे चेतना और आत्मा, को समझने से रोकती हैं। उनके द्वारा प्रस्तावित प्रमुख तर्क नीचे दिए गए हैं:

I. ट्रांसपर्सनल अनुभवों की महत्ता

टार्ट ने ट्रांसपर्सनल अनुभवों (ध्यान, योग, और गहरे आध्यात्मिक अनुभव) को आत्मा और चेतना के समर्थन में सबसे बड़े प्रमाणों में से एक माना। उनका मानना है कि ये अनुभव व्यक्ति को उसकी भौतिक सीमाओं से परे ले जाते हैं और यह दर्शाते हैं कि चेतना केवल मस्तिष्क की जैविक प्रक्रिया नहीं है।

विशेष तर्क: ध्यान और योग के दौरान चेतना की गहराइयों में जो अनुभव होते हैं, वे भौतिकवाद की व्याख्या से परे हैं। यह दिखाता है कि चेतना भौतिकता से स्वतंत्र है।

II. निकट मृत्यु अनुभव (NDEs)

NDEs के माध्यम से, टार्ट ने दिखाया कि चेतना मृत्यु के बाद भी जीवित रह सकती है। उन्होंने उन व्यक्तियों के अनुभवों का अध्ययन किया, जिन्होंने शरीर से बाहर निकलने की भावना, प्रकाश के करीब पहुंचने, और गहन शांति का अनुभव किया। ये घटनाएं भौतिक मस्तिष्क के बिना चेतना के अस्तित्व की ओर संकेत करती हैं।

विशेष तर्क: यदि चेतना केवल मस्तिष्क की गतिविधि है, तो मृत्यु के समय ये अनुभव कैसे हो सकते हैं? यह तर्क भौतिकवाद को चुनौती देता है।

III. टेलीकाइनेसिस और मानसिक शक्तियां

टार्ट ने मानसिक शक्तियों (psychic abilities) जैसे टेलीकाइनेसिस, टेलीपैथी, और भविष्यवाणी को भौतिकवाद के अंत का एक मजबूत प्रमाण माना। टेलीकाइनेसिस (दूरस्थ रूप से भौतिक वस्तुओं को प्रभावित करने की क्षमता) के अध्ययन ने यह दिखाया कि चेतना भौतिक दुनिया पर प्रभाव डाल सकती है।

विशेष तर्क: टेलीकाइनेसिस और टेलीपैथी जैसे अनुभव भौतिकवाद की उन धारणाओं को खारिज करते हैं, जो चेतना को केवल मस्तिष्क की उपज मानते हैं।

IV. आउट-ऑफ-बॉडी एक्सपीरियंस (OBE)

आउट-ऑफ-बॉडी अनुभव, जिसमें व्यक्ति स्वयं को अपने शरीर के बाहर देखता और अनुभव करता है, टार्ट ने आत्मा और चेतना के अस्तित्व का एक महत्वपूर्ण प्रमाण माना। ये अनुभव, चाहे स्वाभाविक रूप से हों या ध्यान और योग के माध्यम से प्रेरित किए गए हों, आत्मा के अस्तित्व की ओर इशारा करते हैं।

विशेष तर्क: OBE के दौरान व्यक्ति भौतिक शरीर की सीमाओं से परे अनुभव करता है, जो भौतिकवाद को स्पष्ट रूप से चुनौती देता है।

V. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और भौतिकवाद की सीमाएं

टार्ट ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण की भौतिकवादी व्याख्या की सीमाओं पर प्रकाश डाला। उनका तर्क है कि विज्ञान ने भौतिक पदार्थों और प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करके चेतना, आत्मा, और वास्तविकता के महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की है। उन्होंने यह भी दिखाया कि भौतिकवाद हमें उन प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ बनाता है, जो हमारी वास्तविकता के मूल को परिभाषित करते हैं।

विशेष तर्क: “भौतिकवाद वास्तविकता का एक छोटा हिस्सा समझता है, लेकिन इसका दावा पूरे ब्रह्मांड को समझने का है।”

VI. क्वांटम चेतना का समर्थन

क्वांटम भौतिकी के क्षेत्र में टार्ट ने बताया कि चेतना और वास्तविकता के बीच गहरा संबंध हो सकता है। क्वांटम सिद्धांत यह सुझाव देता है कि चेतना ब्रह्मांड के मूलभूत स्तर पर कार्य कर सकती है।

विशेष तर्क: क्वांटम भौतिकी भौतिकवाद की उन सीमाओं को उजागर करती है, जो चेतना को समझने में बाधा डालती हैं।

चार्ल्स टार्ट ने “एंड ऑफ मैटेरियलिज्म” में स्पष्ट रूप से दिखाया कि भौतिकवाद चेतना और आत्मा जैसे जटिल प्रश्नों का उत्तर देने में विफल रहा है। उन्होंने ट्रांसपर्सनल अनुभवों, टेलीकाइनेसिस, निकट मृत्यु अनुभव, और क्वांटम भौतिकी जैसे प्रमाणों के माध्यम से भौतिकवाद की सीमाओं को उजागर किया। उनके तर्क बताते हैं कि चेतना और आत्मा की वास्तविकता भौतिकवाद के पार जाती है।

टार्ट का मानना है कि भौतिकवाद एक सीमित दृष्टिकोण है, जो वास्तविकता की गहराई को समझने में असमर्थ है। उनकी राय में, आत्मा और चेतना को समझने के लिए हमें भौतिकवाद से परे सोचने की आवश्यकता है। भौतिकवाद के संकीर्ण दायरे से बाहर निकलकर, विज्ञान और आध्यात्म का संगम ही चेतना और आत्मा के गहन रहस्यों को उजागर कर सकता है। यह तर्क उन लोगों के लिए एक सीधी चुनौती है, जो केवल भौतिकता को ही तर्कसंगत दृष्टिकोण मानते हैं।

निष्कर्ष

इन सभी वैज्ञानिक और दार्शनिक दृष्टिकोणों से यह स्पष्ट है कि चेतना और आत्मा का अस्तित्व भौतिक विज्ञान की सीमाओं के परे है। आत्मा का प्रश्न केवल विज्ञान का नहीं, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण का है, जिसमें दर्शन, विज्ञान और आध्यात्म का समावेश हो।

भारतीय दर्शन, जो हजारों वर्षों से आत्मा और चेतना के विषय पर विचार कर रहा है, आधुनिक विज्ञान के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भौतिकवाद की सीमाओं के परे जाकर ही हम चेतना और आत्मा के रहस्य को समझ सकते हैं।