सनातन धर्म की वैदिक परंपरा को लेकर अनेक विवाद सामने आते हैं। विशेषकर, नवाचार अम्बेडकरवादी बौद्ध धर्म के अनुयायी यह दावा करते हैं कि उनका धर्म सनातन है, क्योंकि धम्मपद में ‘एष धम्मो सनन्तनो’ वाक्य मिलता है। यह दावा किया जाता है कि बौद्ध धर्म समयातीत और शाश्वत है, जबकि हिंदू धर्म को अक्सर भ्रमित रूप से क्षेत्रीय या असंगठित मान लिया जाता है। इस लेख में हम शास्त्रों के प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध करेंगे कि सनातन धर्म ही सही मायनों में “सनातन” है।
हमने पिछले पोस्ट में त्रिपिटक के आधार पर सिद्ध किया है कि बुद्ध ब्राह्मण या क्षत्रिय के यहाँ जन्म लेते हैं | अतएव बौद्ध धर्म से पहले सनातन धर्म होने का संकेत मिलता है | कुछ लोगों के प्रतिक्रिया आये कि पहले सनातन धर्म को सनातन सिद्ध कीजिये क्योंकि सनातन धर्म के ग्रंथों में ऐसा कोई वर्णन नहीं है | इस पोस्ट में हम सनातन धर्म के ग्रंथों के आधार पर शास्त्रों में सनातन शब्द भी दिखाएँगे और सनातन धर्म की कई परिभाषाएँ भी बताएँगे |
सनातन धर्म पर आरोप
आलोचक अक्सर यह सवाल उठाते हैं कि हिंदू धर्म में “सनातन” शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं है। वे तर्क देते हैं कि “सनातन” केवल एक विशेषण है, न कि किसी धर्म का नाम। उनके अनुसार, वैदिक ग्रंथों और धर्मशास्त्रों में किसी धर्म का नाम स्पष्ट रूप से “सनातन” नहीं है। इसके साथ ही वे यह भी पूछते हैं कि यदि यह धर्म सनातन है, तो इसका मूल नाम क्या है? आलोचकों का तर्क यह है कि ‘सनातन’ शब्द वैदिक साहित्य में कहीं व्यवस्थित रूप से नहीं आता।
यह पोस्ट कोरा से लिया गया है –
इस प्रकार, उनके अनुसार, सनातन धर्म की पहचान केवल एक भ्रांत नामकरण है, न कि एक दैवीय या शाश्वत परंपरा।
इन तर्कों के शास्त्र प्रमाण युक्त खंडन के लिए हमारी यह वीडियो अवश्य देखें –
वेद से प्रमाण
वेद सनातन धर्म के मूल ग्रंथ हैं, जो इसे समयातीत और सार्वभौमिक सिद्ध करते हैं। अथर्व वेद में कहा गया है:
पदार्थान्वयभाषाः -(एनम्) इस [सर्वव्यापक] को (सनातनम्) सनातन नित्य स्थायी परमात्मा वे [विद्वान्] कहते हैं, (उत) और वह (अद्य) आज प्रतिदिन नित्य नवा (स्यात्) होता जावे। (अहोरात्रे) दिन और रात्रि दोनों (अन्यो अन्यस्य) एक दूसरे के (रूपयोः) दो रूपों में से (प्र जायेते) उत्पन्न होते हैं ॥२३॥ भावार्थभाषाः -नित्यस्थायी परमात्मा के गुण जिज्ञासुओं को नित्य नवीन विदित होते जाते हैं, जैसे दिन रात्रि से और रात्रि दिन से नित्य नवीन उत्पन्न होते हैं ॥२३॥
(अथर्व वेद, 10.8.23)
इस मन्त्र में स्पष्ट रूप से परमात्मा को सनातन कहा गया है | सनातन परमात्मा की चर्चा आने के कारण इसे सनातन धर्म कहते हैं | इससे सनातन धर्म की पहली परिभाषा हमें मिलती है | व्याकरण के षष्ठी तत्पुरुष समास के अनुसार ‘सनातनस्य धर्म:‘ अर्थात सनातन का जो धर्म है वह सनातन धर्म है !
वाल्मीकि रामायण से प्रमाण
वाल्मीकि रामायण सनातन धर्म की मूल कथा है, जिसमें धर्म और नैतिकता के सनातन धर्म के स्वरूप को श्री राम स्वयं बाली से कहते हैं। किष्किंधाकांड (वाल्मीकि रामायण, 18.18) :
यहाँ व्याकरण के कर्मधारय समास के अनुसार सनातन धर्म की दूसरी परिभाषा बतायी गयी है – “सनातनश्चासौ धर्म:” – अर्थात यह धर्म भी सनातन है | यहाँ यह शंका भी निरस्त हो जाती है कि सनातन विशेषण है क्योंकि यहाँ स्पष्ट होता है कि यह धर्म भी सनातन है और सनातन धर्म संज्ञा भी है । श्रीराम का जीवन स्वयं सनातन धर्म के सिद्धांतों का अनुपालन करता है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वाल्मीकि रामायण का धर्म सनातन परंपरा से गहराई से जुड़ा है।
वाल्मीकि रामायण की विभिन्न टीकाएँ आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –
महाभारत में, विशेष रूप से वन पर्व, शांति पर्व और अनुशासन पर्व, आदि अनेक पर्वों में धर्म के सनातन स्वरूप का उल्लेख मिलता है।
सबसे पहले तो यह समझ लें कि हर जगह सनातन शब्द ही खोजना उचित नहीं | जैसे अथर्व वेद में परमात्मा को सनातन कहा गया है वैसे ही उनके लिए अथवा आत्मा के लिए शाश्वत, नित्य आदि शब्द आये हैं | देखिये कठोपनिषद 1/2/18 से प्रमाण –
गीता भी यही कहती है –
न जायते म्रियते वा कदाचि
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
गीता 2/20
भगवद्गीता की विभिन्न टीकाएँ आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –
महाभारत के आश्वमेधिक पर्व 13/3 में ब्रह्म को शाश्वत कहा गया है –
अतएव सनातन धर्म की पहली परिभाषा षष्ठी तत्पुरुष समास के आधार पर जो हमने ऊपर बताया है – सनातनस्य धर्म: – सनातन का धर्म यहाँ शाश्वत, अज, नित्य आदि शब्दों से समझ लेनी चाहिए जो शास्त्रों में अनेक जगहों पर आया है ! लेकिन अगर आपको सनातन शब्द ही देखना है तो वह भी हम दिखाते हैं –
अनुशासन पर्व अध्याय 14 में उपमन्यु द्वारा शिव स्तुति में उनको सनातन कहा है –
इसी अनुशासन पर्व में दो अध्याय आगे अध्याय 16 में फिर से तंडी शिव जी की स्तुति में उन्हें सनातन कहते हैं –
द्रोण पर्व अध्याय 83 में जयद्रथवध की प्रतिज्ञा से परेशान युधष्ठिर श्री कृष्ण से कहते हैं –
शान्ति पर्व अध्याय 338 में श्वेतद्वीप में नारदजी नामों से भगवान् की स्तुति करते हैं जिनमें से सतरहवाँ नाम सनातन कहते हैं –
अब जिन्हें सनातन धर्म शब्द ही चाहिए वह भी आँखें खोल कर देख लें | वन पर्व अध्याय 12 में श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन में आते हैं और कहते हैं –
यहाँ साफ़ शब्दों में एष धर्मः सनातनः कहा गया है जिससे कि बौद्धों ने एष धम्मो सनंतनो लिया है |
और आगे शल्य पर्व अध्याय 31 में चलिए जब युद्ध से भागकर नदी में छिपे हुए दुर्योधन से युधिष्ठिर कहते हैं –
यहां भी नैष धर्मः सनातनः कहकर सनातन धर्म का प्रयोग किया है !
अच्छा अब हम आपको वन पर्व में ले चलते हैं जहाँ सनातन धर्म की एक और परिभाषा आपकी प्रतीक्षा कर रही है कि आप उसे समझें | वन पर्व के अध्याय 41 में कुबेर अर्जुन को भी सनातन कहते हैं –
तो यहाँ से एक तीसरी परिभाषा पता चलती है – सनातनयति इति सनातनः – अर्थात जो इस धर्म को पालन करने वाले को भी सनातन बना दे वह सनातन धर्म है !
अब ले चलते हैं आपको महाभारत के आदि पर्व अध्याय 157 में जब बकासुर से परेशान ब्राह्मण अपने परिवार को बचाने के लिए अपने बलिदान के बारे में बोलता है तो उसकी पत्नी कहती है कि पत्नी का भी सनातन कर्तव्य यही है जो पति का है – अर्थात अपने परिवार के लिए बलिदान करना –
यह है बलिदान निस्वार्थता पर आधारित सनातन धर्म जिसपर आलोचक अँधा आक्षेप करते रहते हैं !
चलते चलते महाभारत से एक और नवीन व्याख्या हम सनातन धर्म की बताते हैं जो आपने आज तक कभी नहीं सुनी होगी | शान्ति पर्व के अध्याय 209 में वराह अवतारधारी भगवान् विष्णु ने गंभीर नाद किया | तो नाद के साथ होने से उन्हें सनादन कहा गया जो – अपभ्रंश होकर सनातन हो गया |
अर्थात जो बुराइयों के खिलाफ नाद करता है वही सनातन है ! हिनस्ति दूषणानि स हिन्दू: ! यह है सनातन धर्म ! अब आपलोग स्वयं सोचिये कि जो लोग अपने अधकचरे ज्ञान के आधार पर सनातन धर्म पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं वो कितनी बड़ी आत्मवंचना में जी रहे हैं !
आलोचकों के दावों के विपरीत, हिंदू धर्म को सनातन धर्म कहना केवल एक ऐतिहासिक संयोग नहीं है।
वेद परमात्मा की शाश्वतता और सार्वभौमिकता का प्रमाण देते हैं।
वाल्मीकि रामायण धर्म के सनातन स्वरूप को श्रीराम के आदर्शों के माध्यम से व्यक्त करती है।
महाभारत धर्म को सभी युगों में प्रासंगिक और समयातीत सिद्ध करता है।
मनुस्मृति धर्म के सनातन स्वरूप को स्पष्ट रूप से स्वीकार करती है।
इस प्रकार, यह कहना कि सनातन धर्म का अस्तित्व नहीं है या यह केवल एक विशेषण है, न केवल तथ्यात्मक रूप से गलत है, बल्कि शास्त्रीय प्रमाणों को भी नजरअंदाज करता है।
अतः, हिंदू धर्म न केवल नाम में बल्कि सिद्धांत और व्यवहार में भी सनातन है। इसका आधार शाश्वत सत्य, धर्म, और ब्रह्म की वैदिक परंपरा है, जो इसे वास्तविक “सनातन धर्म” बनाता है।