किनारा कर के रिश्तों से… Babaji 2.0 के जाल में | Andhvishwas 2.0 – Ep 4

❝तेरी पल भर की दिल लगी, मोहसिन…
किसी को बर्बाद कर गई होगी…❞

प्रस्तावना:

आज का भाग अंधविश्वास 2.0 शृंखला का सबसे भावनात्मक और सबसे गंभीर एपिसोड है। यह एपिसोड उन अदृश्य मानसिक प्रहारों को उजागर करता है, जो ‘क्लैरिटी’ के नाम पर लोगों को उनके अपनों से दूर कर रहे हैं — खासकर उनके माता-पिता से।

यह लेख किसी एक व्यक्ति को लक्ष्य बनाकर नहीं लिखा गया है, बल्कि उस विचारधारा को सामने लाने का प्रयास है जो व्यक्ति को यह सिखाती है कि भावनात्मक दूरी ही स्पष्टता है।

इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –

🔍 “डिग्रीविहीन स्पष्टता”: दोहरा मापदंड?

यह कितना विडंबनापूर्ण है कि कुछ वक्ता दूसरों को “बाबाजी” कह कर उनका मज़ाक उड़ाते हैं क्योंकि उनके पास कोई मनोविज्ञान या मेडिकल डिग्री नहीं होती, लेकिन स्वयं बिना किसी प्रमाणिक योग्यता के भावनात्मक और मानसिक सलाह देते हैं — वह भी लाखों लोगों को।

क्या यह एक संयोग मात्र है कि ऐसी शिक्षाएँ कई बार मानसिक शोषण और आइडेंटिटी डिस्टर्शन से जुड़ती दिखाई देती हैं?

🧒 पिता से पैसा मांगने पर… “Contract दिखाओ”?!

एक युवक बताता है कि उसके पिता उस पर आर्थिक दबाव डालते हैं। इस पर Babaji 2.0 की सलाह होती है —

“अपने पिता से कहो, कौन-सा कॉन्ट्रैक्ट साइन हुआ था कि मैं आपको पैसे दूँ?”

क्या यही है वह ‘क्लैरिटी’ जिसकी इतनी चर्चा होती है?
क्या यही है वह नई अध्यात्मिकता, जो रिश्तों को लेन-देन की भाषा में ढाल देती है?

📚 मनोवैज्ञानिक शोध और परिवार से अलगाव

Michael Langone की प्रसिद्ध पुस्तक Recovery from Cults और Gill Harvey के शोध के अनुसार:

“कल्टिक सिस्टम में परिवार से भावनात्मक दूरी पैदा की जाती है, ताकि व्यक्ति केवल लीडर पर निर्भर हो जाए।”

जब संतान अपने माता-पिता से ‘गहरा जुड़ाव’ छोड़ देती है, तब गुरुओं की सत्ता मज़बूत होती है — क्योंकि व्यक्ति अब एक ‘फादर फिगर’ की तलाश में उसी की ओर लौटता है जिसने रिश्तों को कमजोर किया।

🪔 रामचरितमानस और रिश्तों की गरिमा

दशरथ जी के आखिरी घड़ियों में कौशल्या जी एक बहुत मार्मिक बात कहती हैं रामचरितमानस में –

नाथ समुझि मन करिअ बिचारू,

राम बियोग पयोधि अपारू ||

करनधार तुम्ह अवध जहाजू,

चढ़ेउ सकल प्रिय पथिक समाजू ||

धीरजु धरिअ त पाइअ पारू,

नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू ||

जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी,

रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी ||

अयोध्याकाण्ड 154/5-8

जब दशरथ जी राम-वियोग में डूब रहे होते हैं, कौशल्या उन्हें याद दिलाती हैं कि “अगर आप धैर्य नहीं रखेंगे तो पूरा परिवार डूब जाएगा।”

और आज कुछ ‘आधुनिक बाबाजी’ कह रहे हैं:

“पिता से कॉन्ट्रैक्ट मांग लो…”

क्या यह अध्यात्म है? या सम्बंधों का संहार?

🍽️ घरेलू काम, गर्भधारण, और “श्रेष्ठता” की परिभाषा

Babaji 2.0 यह भी कहते हैं कि:

  • “खाना बनाना समय की बर्बादी है।”

इन विचारों में वह एक गुप्त श्रेष्ठता विज्ञान (secret spiritual superiority) गढ़ते हैं, जो यह निर्धारित करता है कि कौन-सा जीवन सही है और कौन-सा मूल्यहीन

🧠 मनोवैज्ञानिक विश्लेषण: नकली पहचान और मानसिक संकट

Sylwia Prendable और अन्य शोधकर्ता बताते हैं कि:

“कल्टिक सोच में लोगों को एक ‘सूडो आइडेंटिटी’ दी जाती है, जो उनकी पुरानी पहचान को कुचल देती है। इससे व्यक्ति में मानसिक रोग, PTSD और गहन पहचान संकट उत्पन्न हो सकता है।”

तो सवाल ये उठता है:

अगर स्पष्टता के नाम पर दी गई सलाह से किसी महिला का वैवाहिक जीवन टूट जाए — इसकी ज़िम्मेदारी कौन लेगा?

⚖️ क्या यह Mental Healthcare Act 2017 का उल्लंघन है?

जब कोई व्यक्ति बिना मानसिक स्वास्थ्य डिग्री के, डिजिटल माध्यमों से करोड़ों लोगों को मानसिक सलाह देता है —
और उनसे भावनात्मक निर्णय करवा देता है —

क्या उस पर Mental Healthcare Act 2017 लागू नहीं होना चाहिए?

🤰 “गर्भ महिला का है, निर्णय भी महिला का होना चाहिए” – या फिर परिवार तोड़ने की शुरुआत?

Babaji 2.0 एक वीडियो में कहते हैं:

“बच्चा किसका है ये सवाल ही क्यों है?
अगर गर्भ महिला के शरीर में है, तो निर्णय भी उसका होना चाहिए।”

बिल्कुल — कानूनी तौर पर यह बात सही है।
लेकिन क्या हर नैतिक मूल्य, केवल कानूनी दृष्टिकोण से तय होगा?
क्या माँ-बाप दोनों की जिम्मेदारी और भावना का कोई स्थान नहीं?

अब सोचिए — यदि यही विचारधारा किसी पुरुष के मन में भर दी जाए कि…

“जो बच्चा मेरी सहमति से हुआ, वही मेरा होगा —
बाकी से मेरा कोई लेना-देना नहीं।”

तब क्या होगा?

📘 Male Abortion Research में बताया गया है कि:

“फिर तो पुरुषों को भी सामान अधिकार मिलना चाहिए |

🔹 गर्भ महिला का है, निर्णय भी महिला का? तो पुरुष को क्यों नहीं समान अधिकार?

इस रिसर्च पेपर में वकील Melanie G. McCulley बताती हैं कि:

⚖️ जब एक पुरुष और महिला दोनों की सहमति से यौन संबंध होते हैं और गर्भधारण होता है,
महिला के पास तीन विकल्प होते हैं —
(1) बच्चा जन्म देना, (2) गोद देना, या (3) गर्भपात।
जबकि पुरुष के पास कोई विकल्प नहीं होता।

👨‍⚖️ पुरुष को ना तो गर्भपात रोकने का अधिकार होता है, ना गोद देने की सहमति का अधिकार, और ना ही ‘बाप बनने से इनकार’ करने का विकल्प।

📌 लेखक यह सुझाव देती हैं कि अगर महिला को गर्भपात करने और पालन न करने का संवैधानिक अधिकार है,
तो पुरुष को भी “Male Abortion” यानी कि अपनी जिम्मेदारी और अधिकार को छोड़ने का विकल्प मिलना चाहिए।

अब कल्पना कीजिए — यदि कोई Clarity Guru यह विचार स्त्री और पुरुष दोनों को अलग-अलग सिखाता है,
तो क्या यह पारिवारिक ढांचे को धीरे-धीरे तोड़ने का सटीक तरीका नहीं बन जाता?

👁️‍🗨️ “घर तोड़ने की सलाह सीधे नहीं दी जाती…
पहले उसे ‘अधिकार’ और ‘स्वतंत्रता’ का नाम दिया जाता है।”

🧪 “प्रेग्नेंसी एक व्यर्थ खर्च है – कृत्रिम उपाय अपनाओ” | क्या यह महिलाओं का सशक्तिकरण है या Identity Hijack?

Babaji 2.0 जैसे लोगों ने एक और चौंकाने वाला बयान दिया:

“If women are to attain their true life purpose,
they cannot squander their energy on things like pregnancy.”

सुनने में यह empowerment लगता है, लेकिन यह विचार किसी भी स्त्री की मूल पहचान पर हमला है।

📕 Michael Langone और 📄 Sylwia Prendable के शोध कहते हैं:

“Cult leaders redefine a follower’s entire identity by convincing them that their previous life roles (as mother, homemaker, daughter) are false and meaningless.”

“They hijack the narrative and implant a pseudo-identity labeled as ‘clarity’. This distortion eventually leads to emotional emptiness, PTSD, and fractured selfhood.”

यह ठीक वही हो रहा है:

  • माँ बनने की भावना को “life energy की बर्बादी” कहा जा रहा है।
  • गर्भधारण को “आत्मिक विकास में बाधा” कहा जा रहा है।
  • और कृत्रिम तकनीकों को “श्रेष्ठ विकल्प” बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है।

यह सलाह नारी-सशक्तिकरण नहीं, बल्कि एक spiritual Trojan horse है,
जिसमें संवेदनाओं को हटाकर, ठंडा “दर्शन” बैठाया जाता है।

📌 निष्कर्ष:

जो विचारधारा आपको आपके माँ-बाप और परिवार से काट दे,
वह स्पष्टता नहीं,
Babaji 2.0 का जाल है।

इस लेख को हम कुछ प्रश्नों के साथ समाप्त करते हैं –

🧠 मानसिक स्वास्थ्य और सलाह:

  1. अगर कोई व्यक्ति बिना किसी प्रमाणित मानसिक स्वास्थ्य डिग्री के लाखों लोगों को ‘मन की अशांति’, ‘ग़ुस्सा’, ‘रिश्तों में तनाव’, ‘गर्भधारण’, ‘बचपन के ट्रॉमा’ जैसे विषयों पर सलाह दे — तो क्या उस पर Mental Healthcare Act 2017 लागू नहीं होना चाहिए?
  2. क्या मानसिक सलाह देने से पहले व्यक्ति को psychology या psychotherapy का प्रशिक्षण होना ज़रूरी नहीं है?
  3. जब कोई digital माध्यम से लोगों को मानसिक समाधान बता रहा हो, तो क्या वह “unlicensed therapy” की श्रेणी में नहीं आता?

👨‍👩‍👧 परिवार, रिश्ते और बच्चों को प्रभावित करने वाली बातें:

  1. यदि कोई किसी युवा को यह सलाह देता है कि “पिता से कॉन्ट्रैक्ट दिखाओ,” तो क्या यह संबंध-विच्छेद की मानसिक तैयारी नहीं है? क्या यह Parental Alienation का उदाहरण नहीं हो सकता?
  2. क्या यह उचित है कि एक व्यक्ति सार्वजनिक रूप से यह कहे कि ‘खाना बनाना समय की बर्बादी है’ या ‘प्रेग्नेंसी व्यर्थ ऊर्जा खर्च है’? और वह यह बिना किसी शोध या विशेषज्ञता के कहे?
  3. क्या ऐसी बातें घरेलू जीवन और स्त्री की गरिमा पर मनोवैज्ञानिक हमला नहीं हैं?

📜 कानूनी असमानता और विचारधारा की मनचाही व्याख्या:

  1. अगर गर्भ महिला का है और निर्णय भी महिला का, तो क्या पुरुष को भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी से मुक्त होने का अधिकार नहीं होना चाहिए — जैसा कि “Male Abortion Rights” पर कई देशों में चर्चा हो रही है?
  2. क्या यह Clarity है या विचारों का ऐसा जाल जिसमें रिश्ते, परिवार और नैतिक जिम्मेदारियाँ धीरे-धीरे खो जाती हैं?

🧑‍⚕️ व्यक्ति का भावनात्मक नियंत्रण और dependency:

  1. अगर कोई व्यक्ति बार-बार लोगों को भावनात्मक रूप से तोड़ता है, उनके आंसू दिखाकर कहता है कि “अब तुम्हारा जन्म हो गया है” — तो क्या यह भावनात्मक निर्भरता (emotional dependency) पैदा करने की एक तकनीक नहीं हो सकती?
  2. क्या इस प्रकार के सार्वजनिक मानसिक हस्तक्षेप की जाँच राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों को नहीं करनी चाहिए?

⚖️ सार्वजनिक हित के लिए समापन प्रश्न:

  1. क्या यह सब सिर्फ संयोग है? या एक गहरी, संरचित विचारधारा है जो व्यक्ति को परिवार, परंपरा, और आत्मसम्मान से काट देती है — और फिर इसे Clarity का नाम दे देती है?
  2. क्या मनोवैज्ञानिक संस्थानों, कानून विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों को इस पर अध्ययन नहीं करना चाहिए?