Arya Prashant’s Marketing Drama vs My Berkeley Certificate

🔥 प्रस्तावना (Introduction)

📜आज के दौर में जब मार्केटिंग को ज्ञान का चोला पहनाया जा रहा है, सवाल उठाना आवश्यक हो गया है।

जब स्वयंभू स्पष्टतावादी भ्रम फैलाने लगे,
और विश्वविद्यालयों की गरिमा निजी प्रचार की भेंट चढ़ने लगे —
तब प्रश्न उठाना केवल अधिकार नहीं, कर्तव्य बन जाता है।

“आर्य प्रशांत” — एक स्वघोषित आचार्य जिन्होंने

  • वैज्ञानिक तथ्यों की आड़ में अंधश्रद्धा फैलायी,
  • स्पष्टता के नाम पर आत्मविरोधी (Self-Contradictory) दर्शन रचा,
  • और सार्वजनिक मंचों पर भावनात्मक आक्रामकता को नया सामान्य बना दिया।

लेकिन प्रश्न केवल एक व्यक्ति का नहीं है।
प्रश्न यह है:
👉 UC Berkeley जैसा विश्वविख्यात संस्थान कैसे चुपचाप अपने नाम का उपयोग होने दे सकता है,
उस विचारधारा के लिए जो न तो वैज्ञानिक है, न मानवीय?

क्या UC Berkeley ने अपनी समावेशिता (Inclusion) और करुणा (Compassion) के मूल मूल्यों का परित्याग कर दिया है?
क्या ऑनलाइन लोकप्रियता की चमक में उन्होंने नैतिकता और जिम्मेदारी का दीपक बुझा दिया है?

  • इस पोस्ट में हम एक केस स्टडी के माध्यम से देखेंगे कि कैसे वास्तविक योग्यता और प्रमाणित शिक्षा का अपमान किया जा रहा है।

इस पर हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है-

🧩 भाग 1: “यूनीवर्सिटी इनविटेशन” का रहस्य

🏛️आर्य प्रशांत ने हाल में दो वीडियो जारी किये हैं जिसमें उन्होंने ऐसे दिखाने की कोशिश की है कि वो University of California, Berkeley के आमंत्रित अतिथि वक्ता हैं जबकि दोनों वीडियो में किसी प्रोफेसर ने आकर उनका स्वागत नहीं किया | केवल तीन विद्यार्थियों से उन्होंने बात कर ली है वो भी ज़ूम कॉल पर !

  • क्या जब कोई छात्र समूह बुलाता है, बिना किसी प्रोफेसर के स्वागत के, तो उसे आधिकारिक विश्वविद्यालय आमंत्रण कहा जा सकता है?
  • क्या यह विश्वविद्यालय के ब्रांड का दुरुपयोग नहीं है?
  • 🎯 “When no professor welcomes a speaker, can it be called an official university invitation?”

थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए की उन्हें University of California, Berkeley ने आमंत्रित भी किया था तो भी सार्वजनिक तौर पर उन्होंने जो बातें की हैं वो बहुत ही विचित्र हैं !

🧠 भाग 2: उद्यमिता (Entrepreneurship) पर रहस्यमयी दिल की सलाह? — एक गम्भीर चूक!

📜
आर्य प्रशांत अपने लेक्चर में उद्यमिता (entrepreneurship) पर एक “गूढ़” सलाह देते हैं —

“Entrepreneur बनने के लिए सबसे पहले अपने दिल से बात करनी चाहिए।”

यह सुनने में जितना रोमांचकारी लगता है, उतना ही अव्यावहारिक भी है।

✅ एक गंभीर उद्यमी को चाहिए:

  • 📊 Feasibility Analysis करना — यानी क्या मेरा विचार वाकई व्यावसायिक रूप से टिकाऊ है?
  • 🏛️ Business Frameworks जैसे SWOT Analysis, Business Model Canvas का प्रयोग करना।
  • 🎯 Market Research और Expert Consultation करना।
  • 🧠 Statistical Risk Assessment करना।

सिर्फ दिल से बात करने पर कई बार दिवालिया भी हुआ जा सकता है!

🔥 आत्म-विरोधाभास (Self-Contradiction)

आर्य प्रशांत जी का एक और लेक्चर देखें:
जब एक महिला कहती है कि वह घर के कामों के प्रति कम समय देने पर guilty महसूस करती है,
तो वही आचार्य तुरंत सलाह देते हैं:

“इस बात का कोई गिल्ट मत करो!”

❗ तो भाई,

  • एक जगह कहते हो “दिल की सुनो”,
  • दूसरी जगह जब दिल कुछ कहता है, तो उसे दबा दो?

यह कैसा तर्क है?
दिल की सुनो” तब तक ठीक है… जब तक दिल वही कहे जो Clarity बाबा 2.0 चाहते हैं।

इनकी clarity का सिद्धांत बड़ा आसान है— जब दिल इनकी बात माने, तो वो हृदय है। जब ना माने, तो conditioning है।

इनकी clarity में guilt भी curated होता है—जो इनकी narrative में फिट न हो, वो guilt ही गलत!

इनकी clarity में सिर्फ दो options हैं— या तो आप सही सोच रहे हैं क्योंकि इन्होंने सिखाया… या आप गलत सोच रहे हैं क्योंकि किसी और ने सिखाया!

🧠 भाग 3: विज्ञान और तथ्यों का मजाक

🔬हमने Soul Series में कई सारे शोध पत्र दिखाए थे जो आत्मा और पुनर्जन्म के पक्ष में आधुनिक विज्ञान के मंतव्य को प्रकाशित करता है | यह एक विवादस्पद विषय है और कुछ विद्वान् इसे मानते हैं और कुछ नहीं !

  • “हमारे पास एक ही जीवन है” — यह दावा न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से विवादास्पद है बल्कि शोधों द्वारा भी चुनौती दी गई है।

🔬 क्वांटम भौतिकी और आत्मा पर दो ऐतिहासिक शोध पत्र

🧠 1. पहला शोध पत्र

“Quantum Physics in Neuroscience and Psychology”
(लेखक: Jeffrey M. Schwartz, Henry P. Stapp और Mario Beauregard)

यह शोध पत्र दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों के प्रतिष्ठित विद्वानों द्वारा लिखा गया है —

  • Jeffrey M. Schwartz (UCLA Neuropsychiatric Institute)
  • Henry P. Stapp (Theoretical Physics, Lawrence Berkeley National Laboratory, University of California, Berkeley)
  • Mario Beauregard (Université de Montréal)

📖 मुख्य बातें:

  • क्लासिकल भौतिकी (17वीं-18वीं सदी की सोच) अब पुरानी हो चुकी है।
  • आधुनिक क्वांटम भौतिकी यह दिखाती है कि मस्तिष्क केवल भौतिक प्रक्रियाओं से संचालित नहीं होता।
  • मानव का ध्यान और मानसिक प्रयास वास्तविक रूप से मस्तिष्क संरचनाओं को बदल सकते हैं।
  • “Self-directed Neuroplasticity” जैसी अवधारणाएँ यह प्रमाणित करती हैं कि हमारा मन केवल एक बायप्रोडक्ट नहीं, बल्कि सक्रिय शक्ति है।

✍🏻 निष्कर्ष:
यह शोध मानसिक प्रयास और चेतना को वैज्ञानिक प्रक्रिया का हिस्सा बनाते हैं, और आत्मा या चेतना के अस्तित्व की अवधारणा को गहरी वैज्ञानिक वैधता प्रदान करते हैं।

🧠 2. दूसरा शोध पत्र
“Does Quantum Mechanics Predict the Existence of Soul?”
(लेखक: Dr. Hassan H. Mohammed, Department of Physics, Basrah University, Iraq)

📖 मुख्य बातें:

  • क्वांटम भौतिकी के प्रयोगों से “Body-Soul Duality” (शरीर-आत्मा द्वैत) के सिद्धांत को बल मिलता है।
  • समय की उल्टी दिशा (Time Reversal) जैसे क्वांटम प्रयोग यह दिखाते हैं कि भविष्य भी वर्तमान को प्रभावित कर सकता है — यह आत्मा या चेतना के अस्तित्व को वैज्ञानिक रूप से इंगित करता है।
  • माइक्रोट्यूब्यूल्स (Microtubules) जैसे न्यूरल ढांचे में भी क्वांटम प्रभावों के प्रमाण मिल रहे हैं, जो मन और आत्मा के गहरे सम्बंध को दर्शाते हैं।
  • वैज्ञानिकों ने चेतना को “Quantum State of Matter” (जैसे पदार्थ की एक अवस्था: सॉलिड, लिक्विड आदि) के रूप में प्रस्तावित किया है।

✍🏻 निष्कर्ष:
इस शोध पत्र से यह स्थापित होता है कि चेतना केवल दिमाग की गतिविधि नहीं है, बल्कि यह प्रकृति का एक मौलिक पहलू (Fundamental Aspect) है।

  • 🎯 सवाल: “क्या वैज्ञानिक अनुसंधान को नज़रअंदाज़ कर एकतरफा विचारधारा फैलाना जिम्मेदार वक्तृत्व है?”

🎭 भाग 4: खुद का विरोधाभास

🔁”Facts by definition are verifiable and falsifiable.” – Arya Prashant’s 17th century science

  • आर्य प्रशांत एक तरफ तर्क करते हैं कि केवल फेक्ट्स मान्य हैं (जो falsifiable/verifiable हों),
  • लेकिन उनका अपना यह दावा भी न तो फाल्सीफाइ किया जा सकता है न वेरिफाइ — यानी उनका सिद्धांत स्वयं पर लागू नहीं होता।
  • 🎯 सवाल: “क्या यह स्वयं में एक अंधश्रद्धा नहीं बन जाता?”

🧠 भाग 5: चार अंधश्रद्धाएँ — जो स्वयं “तथाकथित स्पष्टता” के प्रचारक में दिखीं!

📜आर्य प्रशांत ने अंध श्रद्धाओं को आदर न देने की बात की है लेकिन उन्होंने इन दो वीडियो में कई सारी ऐसी बातें की हैं जो स्वयं अंधश्रद्धा है |
लेकिन जब तथाकथित “तथ्यवादी” वक्ता स्वयं अंधविश्वासों का प्रचार करने लगे, तो प्रश्न उठाना धर्म बन जाता है।
यहाँ हम आर्य प्रशांत के चार ऐसे ‘ब्लाइंड फेथ’ उजागर कर रहे हैं जो स्वयं उनके प्रवचनों से सामने आए:

1. 🧿 “केवल एक ही जीवन है” — बिना वैज्ञानिक प्रमाण के अंतिम सत्य?

  • आधुनिक विज्ञान में आत्मा, पुनर्जन्म, चेतना के अस्तित्व पर निरंतर शोध हो रहे हैं।
  • विश्वभर के वैज्ञानिक समुदायों में इस पर एकमत नहीं है।
  • फिर कैसे कोई बिना वैज्ञानिक प्रमाण के यह दावा कर सकता है कि “केवल एक ही जीवन है”?

🎯 यह स्वयं एक अंधश्रद्धा है — वैज्ञानिक खुलेपन का निषेध।

2. 🧿”यदि आप अपनी भावनाओं को सार्वजनिक स्थान पर लाते हैं, तो मुझे उन्हें आहत करने का अधिकार है।”

📌 “दूसरों की भावनाओं को आहत करने का अधिकार” कोई सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत नहीं है।
📌 यह केवल उनकी व्यक्तिगत मान्यता है, जबकि अधिकांश सभ्य समाजों (विशेषकर भारत के कानूनों) में जानबूझकर भावनात्मक आघात पहुँचाना अपराध माना जा सकता है या नहीं इसपर कानून के विशेषज्ञ अपना मंतव्य हमें बताएं (IT Rules 2021, IPC 295A)?
📌 भावनाओं को चोट पहुँचाने को सामान्य बताना उनकी अपनी निजी भावनात्मक मान्यता है — एक और अंधश्रद्धा।

3. 🧿तथ्य हमेशा भावनाओं पर वरीयता रखते हैं

📌 भावनात्मक चोट किसी वैज्ञानिक प्रमाण या सामाजिक शोध को अमान्य नहीं कर सकती।

🧠 Placebo शोध (छद्म उपचार) यह दिखाता है कि भावनाएँ (जैसे आशा या विश्वास) जैविक परिवर्तनों को जन्म दे सकती हैं —
लेकिन वे बीमारी की वास्तविकता या वैज्ञानिक परीक्षण की आवश्यकता को समाप्त नहीं कर सकतीं

इसपर हमारा यह सप्रमाण लेख द्रष्टव्य है !

इसके अतिरिक्त आधुनिक मनोविज्ञान भी Positive Illusions की बात करता है !

अतएव कोई बात तथ्यात्मक नहीं है तो उसे खारिज नहीं किया जा सकता है !

4. 🧿 “फैक्ट का मतलब है फाल्सिफ़ायबल और वेरिफायबल” — लेकिन खुद का कथन?

  • “फैक्ट” को फाल्सीफाय और वेरिफाय होना चाहिए — यह दावा स्वयं न तो फाल्सीफाय हो सकता है न वेरिफाय।
  • यह दावा स्वयं अपनी कसौटी पर खरा नहीं उतरता।

इसके अतिरिक्त Jeff Kasser जो University of Colorado में प्रोफेसर हैं उनके Philosophy of Science की व्याख्यान शृंखला साफ़ शब्दों में कहा है कि यह सिद्ध नहीं किया जा सकता की किसी भी सिद्धांत के वैज्ञानिक होनेके लिए उसका falsifiable होना ज़रूरी है !

🎯 जब सिद्धांत स्वयं की जांच में विफल हो जाए, तो वह वैज्ञानिक नहीं, अंधविश्वास बन जाता है।

📚 भाग 6: UC Berkeley की मूल संस्कृति बनाम प्रस्तुत विचारधारा

🎓🔹 सबसे पहला और सबसे बुनियादी प्रश्न:

👉 क्या UC Berkeley ने वास्तव में स्वयं ‘आर्य प्रशांत’ को आमंत्रित किया था, या यह व्यक्तिगत पहल थी?

यदि नहीं, तो —
👉 क्या UC Berkeley सार्वजनिक रूप से इस स्पष्टीकरण को देने के लिए बाध्य नहीं है कि उसका नाम व्यक्तिगत ब्रांडिंग के लिए क्यों और कैसे प्रयोग हुआ?

यदि हाँ (आमंत्रण हुआ था), तो —
👉 क्या UC Berkeley उनके विचारों से सहमत है?
**👉 क्या UC Berkeley अब अपने समावेशिता (inclusion) और करुणा (compassion) के मूलभूत सिद्धांतों के विपरीत विचारों को भी समर्थन देना शुरू कर चुका है?

❓ मैं यहाँ UC Berkeley से कुछ प्रश्न करना चाहूंगा:

🎯प्रश्न :

“क्या UC Berkeley अपने नाम का उपयोग ऐसे कार्यक्रमों के लिए स्वीकार करता है जो भावनात्मक आघात और वैचारिक कठोरता (Ideological Rigidity) को बढ़ावा देते हैं?”


🎯प्रश्न:

“क्या भावनात्मक रूप से आक्रामक वक्ताओं के साथ जुड़ना UC Berkeley की समावेशिता और करुणा की मूल प्रतिबद्धता के अनुरूप है?”


🎯प्रश्न :

“क्या वैश्विक अकादमिक संस्थानों को यह स्पष्ट नहीं करना चाहिए जब उनका नाम व्यक्तिगत प्रचार (Personal Branding) के लिए दुरुपयोग किया जाए?”


🎯प्रश्न :

“क्या Berkeley जैसे वैश्विक संस्थान को इस प्रकार के वक्तृत्व से स्वयं को जोड़ना चाहिए?”

✍️ भाग 7: मेरा उत्तर — रामचरितमानस और तुलसीदासजी से प्रेरणा

🕉️मेरे पास विश्व के टॉप संस्थानों के प्रमाणपत्र हैं (Berkeley, MIT, Kellogg आदि),

U C Berkeley Data Strategy Certificate

लेकिन अगर UC Berkeley ऐसे अयोग्य व्यक्तियों को बुलाकर इस तरह से विद्यार्थियों के करवाते हैं तो ऐसे संस्थान के सर्टिफिकेट को मैं फाड़ के फेंकता हूँ !

  • फिर भी मेरी श्रद्धा उस तुलसीदासजी में है जिन्होंने कहा:

“कवि न होऊँ, नहि चतुर कहावऊँ ।
मति अनुरूप राम गुण गावऊँ ।।” (बालकाण्ड १२/९)

  • ज्ञान का असली माप विनम्रता और श्रद्धा है — न कि मार्केटिंग या भीड़ का आकार।

💥 निष्कर्ष (Conclusion)

🌟

  • ज्ञान और मार्केटिंग के बीच का अंतर स्पष्ट है।
  • जो ब्रांड बनाते हैं, उन्हें भी देखना चाहिए कि उनके मंचों का प्रयोग किस प्रकार के विचारों को बढ़ावा देने में हो रहा है।
  • आने वाले समय में और भी अनुसंधान-आधारित प्रश्न उठते रहेंगे — विनम्रता से, प्रमाण के साथ।