Ashoka के नाम पर भ्रम, Buddha के नाम पर ज़हर | Science Journey का एजेंडा?

🔥 प्रस्तावना:

“इतिहास या तो स्मृति बनता है, या औजार।”

आज कुछ यूट्यूब चैनल्स—विशेष रूप से Science Journeyअशोक और बुद्ध के नाम पर एक नये प्रकार का वैचारिक एजेंडा चला रहे हैं। एक तरफ, ये चैनल हिन्दू प्रतीकों और मान्यताओं का तिरस्कार करते हैं, वहीं दूसरी तरफ selectively वे ही बौद्ध ग्रंथों को संदर्भ में लाते हैं जो उनके कथित वैज्ञानिक एजेंडा के अनुकूल हों।

पर क्या वाकई अशोक वह महान सम्राट था जिसकी मूर्ति हमने किताबों में पढ़ी?
क्या ‘Priyadarshi’ की छवि स्वयं प्रचार का हिस्सा थी?
और क्या बुद्ध के नाम पर आज तथाकथित नव-बौद्ध आंदोलन ‘विज्ञान’ के नाम पर धार्मिक विकृति फैला रहा है?

आइए तथ्यों पर आधारित चर्चा करते हैं।

इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –

🧱 भाग 1: Ashoka – महान सम्राट या प्रचार विशेषज्ञ?

जब कोई शासक अपने शासनकाल में लाखों लोगों की हत्या करवा दे, यातना गृह बनवाए, अपने ही भाई को मरवा दे, और फिर खुद को ‘प्रियदर्शी’ कहलवाए—तो इतिहास को चेत जाना चाहिए। लेकिन दुखद यह है कि भारत में अशोक को आज भी ‘धम्म सम्राट’, ‘बौद्ध धर्म का संवाहक’ और ‘अहिंसा का प्रतीक’ के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।

यह आलेख IJLMH (International Journal of Law Management & Humanities) द्वारा प्रकाशित शोधपत्र “The Myth of Ashoka” (2023) पर आधारित है, जिसमें तर्क और शिलालेखों के माध्यम से यह दिखाया गया है कि अशोक की महिमा वास्तव में एक राजनीतिक प्रचार (Political Propaganda) थी।

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🧱 अशोक का प्रचार क्या है?

शिक्षा व्यवस्था, सरकारी पुरस्कार, और कई राजनीतिक दलों द्वारा अशोक को जिस रूप में प्रचारित किया गया है, उसमें निम्नलिखित बातें प्रमुख हैं:

  • अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद पश्चात्ताप किया और अहिंसा का मार्ग अपना लिया
  • वह बौद्ध धर्म के प्रचारक बने और 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया
  • उन्होंने धार्मिक सहिष्णुता और लोककल्याण के शिलालेख लिखवाए
  • वह ‘प्रियदर्शी’ यानी सभी को प्रिय लगने वाले सम्राट थे
  • वह दयालु, करुणाशील और समाज के सभी वर्गों के प्रति समभाव रखने वाले थे

👉 पर क्या ये सब तथ्य हैं? या चुने हुए अंशों के आधार पर बनाई गई एक प्रचार छवि?

📜 शोधपत्र “The Myth of Ashoka” – एक परिचय

लेखक: Hemant Sharma, International Journal of Law Management and Humanities, Volume 6 Issue 1, 2023

✒️ मुख्य तर्क:

  • अशोक का पश्चात्ताप केवल दूरस्थ शिलालेखों में दिखता है, वास्तविक कलिंग क्षेत्र में नहीं
  • 14वाँ शिलालेख स्वयं स्वीकार करता है कि विरोधाभासी घोषणाएँ राजनीतिक कारणों से की गईं
  • उन्होंने 18,000 आजीविकों को मरवाया (Ashokavadana से प्रमाणित)
  • उन्होंने बौद्ध Hell के आधार पर यातना गृह (Ashoka’s Hell) बनवाया
  • सत्ता की क्षति रोकने हेतु धर्म के नाम पर प्रचार अभियान चलाया गया
  • उन्होंने ‘प्रियदर्शी’ जैसे विशेषणों का उपयोग कर अपनी कुरूपता और क्रूरता छुपाई

➡️ लेखक इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अशोक की महानता का पूरा नैरेटिव राजनीतिक पुनर्निर्माण (political image rebranding) था।

🧾 Ashokavadana – प्रचार और क्रूरता का द्वंद्व

Ashokavadana, एक प्राचीन बौद्ध ग्रंथ है जो Divyavadana संकलन का हिस्सा है। यह ग्रंथ बौद्ध धर्म का प्रचार करते हुए अशोक के चरित्र को भी चित्रित करता है, और इसमें उनकी अत्यंत क्रूरता के अनेक विवरण मिलते हैं

🔥 मुख्य घटनाएँ:

  1. Ashoka’s Hell – नरक जैसी यातना गृह जहाँ गिरिका नामक कसाई द्वारा अशोक के आदेश पर लोगों को यातनाएँ दी जाती थीं।
  2. 18,000 आजीविकों की हत्या – केवल एक चित्र के कारण जिसमें बुद्ध को जैनों के आगे झुकते दिखाया गया था।
  3. 500 रानियों को जीवित जलवाना – क्योंकि उन्होंने अशोक को ‘अप्रिय’ कहा था।
  4. अपने भाई वितसोक की हत्या – जैनों का सिर लाने पर इनाम घोषित किया गया था, गलती से भाई ही मारा गया।
  5. मांसाहार, गुलामी और धमकी भरे शिलालेख – Dhamma प्रचार की आड़ में हिंसा और शक्ति प्रदर्शन।

Ashoka को अक्सर अहिंसा का प्रतीक और बौद्ध धम्म का संवाहक कहा जाता है। परंतु जब हम उनके स्वयं के शिलालेखों को ध्यान से पढ़ते हैं, तो स्पष्ट होता है कि उनका ‘धम्म’ केवल आध्यात्मिक नहीं था—वह एक राजनीतिक औजार भी था।

🥩 I. मांसाहार – दया की सीमा कहाँ थी?

साक्ष्य:
Ashoka के पाँचवे स्तंभ शिलालेख (Pillar Edict V) में स्पष्ट रूप से उल्लेख है:

“राजकीय रसोई के लिए केवल दो मोर और एक हिरण की हत्या की अनुमति है—और भविष्य में यह भी रोकी जाएगी।”

🧠 अर्थ:

  • अशोक ने मांसाहार का पूर्ण त्याग नहीं किया था।
  • वह केवल नियंत्रण की बात कर रहे थे, त्याग की नहीं।
  • अहिंसा का प्रचार किया, लेकिन राजकीय रसोई में मांस चलता रहा

⛓️ II. गुलामी – दया, पर स्वतंत्रता नहीं

साक्ष्य:
द्वितीय और सप्तम शिलालेख (Rock Edict II & VII) में Ashoka “दासों (daasa)” और “भृतकों (bhaatakas)” की भलाई की बात करते हैं।

🧠 अर्थ:

  • अगर अशोक ने गुलामी समाप्त की होती, तो वह इसे घोषणा के रूप में दर्ज करते
  • लेकिन उन्होंने केवल “दया दिखाने” की बात की—मुक्ति की नहीं
  • गुलामी की प्रथा को बनाए रखा गया, केवल उसमें ‘धम्म’ की परत चढ़ा दी गई।

⚔️ III. धमकी भरे शिलालेख – पश्चात्ताप की सीमा

साक्ष्य:
तेरहवाँ शिलालेख (Rock Edict XIII) में कलिंग युद्ध के पश्चात पश्चात्ताप का वर्णन मिलता है, परंतु आगे लिखा गया है:

“वनवासी यदि अधीन नहीं हुए, तो राजाज्ञा से बल प्रयोग होगा। पश्चात्ताप की भी एक सीमा होती है।”

🧠 अर्थ:

  • पश्चात्ताप के साथ-साथ धमकी दी गई है।
  • Dhamma की भाषा में भी राजनीतिक चेतावनी छिपी है।
  • यह शुद्ध अहिंसा नहीं, बल्कि सशर्त नैतिकता (conditional morality) है।

➡️ प्रश्न: क्या ऐसे व्यक्ति को “धम्म सम्राट” कहना इतिहास की उपेक्षा नहीं है?

🧨 भाग 2: क्या अशोक को त्वचा रोग था?

क्या एक सम्राट जो स्वयं को “प्रियदर्शी” (सभी को प्रिय लगने वाला) कहे, वास्तव में प्रियदर्शी था? या फिर यह एक राजनीतिक छवि निर्माण (image branding) का प्रयास था?
कुछ बौद्ध ग्रंथों में उल्लेख है कि अशोक की त्वचा खुरदरी थी, उसका शरीर अजीब था, और वह देखने में आकर्षक नहीं था। इसी आधार पर कुछ चिकित्सकों और इतिहासकारों ने यह अनुमान लगाया कि अशोक Neurofibromatosis Type 1 नामक त्वचा रोग से पीड़ित हो सकता था।

यह अनुमान वैज्ञानिक रूप से कितना ठोस है, इस पर दो प्रमुख शोध पत्रों के आधार पर चर्चा की जा रही है:

📘 1. पक्ष में शोध:

शीर्षक: “Emperor Ashoka: Did he suffer from von Recklinghausen disease?”
लेखक: Wig NN & Sharma S
स्रोत: Indian Journal of Psychiatry, Volume 57, Issue 1, 2015

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✒️ शोध का सारांश:

  • लेखकों ने अशोक की शारीरिक स्थिति का विश्लेषण बौद्ध ग्रंथों जैसे Ashokavadana और Divyavadana से प्राप्त विवरणों के आधार पर किया।
  • ग्रंथों में बताया गया है कि अशोक की त्वचा खुरदरी, स्पर्श में अप्रिय, और शरीर असमान (disfigured) था।
  • उन्होंने बोधिवृक्ष दर्शन करते समय बार-बार मूर्छा (syncope) खोई—जो neurological समस्याओं का संकेत हो सकता है।
  • इन लक्षणों को देखकर लेखकों ने अनुमान लगाया कि अशोक संभवतः Neurofibromatosis Type 1 (von Recklinghausen’s disease) से ग्रसित था।
  • यह रोग आमतौर पर त्वचा पर गांठें, अनियमित रेखाएं, हड्डियों की विकृति और मानसिक/शारीरिक कमजोरी के रूप में सामने आता है।

🔬 निष्कर्ष:

लेखकों का मत है कि अगर अशोक में ये सभी लक्षण मौजूद थे, तो यह रोग तार्किक व्याख्या हो सकती है। उन्होंने इस अनुमान को मिथकीय नहीं, संभाव्य चिकित्सा विश्लेषण बताया।

📕 विरोध में शोध:

शीर्षक: “Ashoka and the von Recklinghausen Disease – A Myth?”
लेखक: Rajnish Raj, et al.
स्रोत: International Journal of Current Advanced Research (IJCAR), Vol 6, Issue 12, 2017

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✒️ आलोचनात्मक विश्लेषण:

  • यह शोध पत्र पहले लेख (Wig & Sharma) के निष्कर्षों की कड़ी समीक्षा करता है।
  • लेखक कहते हैं कि:
    • Primary historical records या archaeological sources में कहीं भी स्पष्ट रूप से त्वचा रोग का उल्लेख नहीं है।
    • ग्रंथों में वर्णित खुरदरी त्वचा या अन्य लक्षण प्रतीकात्मक या मिथकीय अलंकरण भी हो सकते हैं।
    • बौद्ध ग्रंथों की शैली अक्सर अलौकिक या प्रतीकात्मक होती है, अतः किसी भी चिकित्सा निष्कर्ष पर पहुंचना तर्कहीन जल्दबाज़ी होगी।
  • साथ ही, उन्होंने यह भी तर्क दिया कि Wig & Sharma ने जो लक्षण प्रस्तुत किए हैं, वे कई अन्य बीमारियों में भी पाए जाते हैं, अतः केवल Neurofibromatosis का अनुमान लगाना speculative है।

🔬 निष्कर्ष:

यह पेपर इस पूरी धारणा को एक “आधुनिक कल्पना” (modern myth) के रूप में देखता है जो ऐतिहासिक या चिकित्सा प्रमाणों से पुष्ट नहीं है।

🧠 लेखक (Shaastra) की व्यक्तिगत टिप्पणी:

मैं दोनों शोधपत्रों को ध्यानपूर्वक पढ़ने के बाद इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा कि अशोक को निश्चित रूप से त्वचा रोग था
हाँ, Ashokavadana और अन्य ग्रंथों में जो लक्षण दिए गए हैं—वे संभावित रूप से Neurofibromatosis से मेल खा सकते हैं, और Wig & Sharma का अनुमान औचित्यपूर्ण है।

लेकिन मैं साथ ही यह भी स्वीकार करता हूँ कि Rajnish Raj et al. की आलोचना वैज्ञानिक रूप से ज़रूरी और संतुलित है।
इतिहास और चिकित्सा, दोनों में अनुमान लगाना आसान है—पर प्रमाण के बिना निष्कर्ष देना शोध की नैतिकता के विरुद्ध है।

✒️ मेरी राय:

“मुझे यह दावे से नहीं कहना कि अशोक को त्वचा रोग था, लेकिन मुझे यह और अधिक विचित्र लगता है कि इतिहास में कोई और राजा स्वयं को ‘प्रियदर्शी’ नहीं कहता—सिवाय अशोक के।
क्या यह उपाधि केवल छवि सुधार (image compensation) नहीं थी?”

इस प्रश्न का उत्तर शायद न तो चिकित्सा दे सकती है, न इतिहास…
लेकिन राजनीतिक मनोविज्ञान (political psychology) जरूर कुछ संकेत देता है।

🧠 भाग 3: ‘Science Journey’ – क्या यह विज्ञान है या वैचारिक हेरफेर?

Science Journey जैसे Neo-Buddhist प्लेटफ़ॉर्म Ashokavadana की उन्हीं बातों को स्वीकारते हैं जो उनके एजेंडा को सूट करती हैं:

  • 84,000 स्तूप की कहानी – हाँ, मान्य
  • धम्म प्रचार – हाँ, श्रेष्ठ
  • अशोक का बौद्ध धर्म में परिवर्तन – हाँ, ऐतिहासिक
  • पुष्यमित्र शुंग वैदिक नहीं बल्कि बौद्ध था – तोड़ मरोड़ के की गयी व्याख्या लेकिन मान्य
  • लेकिन—
  • Ashoka’s Hell – “बाद में जोड़ा गया हिस्सा”
  • 18,000 हत्याएँ – “प्रतीकात्मक कथा”
  • गुलामी, हिंसा, यातना गृह – “गलत व्याख्या”
  • Supernatural कहानियाँ – “मौन”
  • पुष्यमित्र के समय ब्राह्मणों का वर्णन अशोकावदान में – “बाद में जोड़ दिया गया/गलत अनुवाद”

➡️ यह वही प्रवृत्ति है जहाँ कथित “प्रमाणवाद” केवल सुविधाजनक प्रमाण स्वीकार करता है

🧾 भाग 4: जब महावंश में भी हैं चमत्कार — फिर विज्ञान कहाँ गया?

Neo-Buddhist प्रचारक जैसे Science Journey अकसर यह दावा करते हैं कि वे बौद्ध ग्रंथों को प्रमाण मानते हैं — लेकिन केवल तब जब वह उनके वैचारिक नैरेटिव के अनुकूल हों।
महावंश (Mahāvaṃsa) जैसे ऐतिहासिक ग्रंथ का भी यही हाल है—जहाँ से वे सिर्फ कुछ अंशों को ‘इतिहास’ की तरह प्रस्तुत करते हैं और बाकी को चुपचाप अनदेखा कर देते हैं।

✅ Science Journey किन अंशों को स्वीकार करता है?

🏛️ 1. अशोक के बेटे महेन्द्र और बेटी संघमित्रा का श्रीलंका जाना

🌿 2. बोधिवृक्ष की टहनी का श्रीलंका लाना

👑 3. अशोक द्वारा 84,000 स्तूपों का निर्माण

Science Journey जैसे नवबौद्ध प्रचारक अकसर हिंदू ग्रंथों की कहानियों को “मिथक”, “अंधविश्वास” और “अवैज्ञानिक” कहकर खारिज कर देते हैं। लेकिन क्या उन्होंने कभी अपने ही बौद्ध स्रोतों जैसे महावंश (Mahāvaṃsa) को पढ़ा है?

महावंश, जो कि श्रीलंका के बौद्ध इतिहास का मूल ग्रंथ है, बौद्ध धर्म की स्थापना और अशोक के वंशजों की गौरवगाथा को प्रस्तुत करता है। परंतु इसके अंदर कई स्पष्ट रूप से चमत्कारिक और अलौकिक घटनाएं दर्ज हैं।

🧙‍♂️ I. बुद्ध का तीन बार श्रीलंका आगमन

“बुद्ध स्वयं तीन बार उड़कर श्रीलंका आए थे और उन्होंने यक्षों, नागों और राक्षसों को वहां से खदेड़ा था।”

  • महावंश बताता है कि बुद्ध ने हवा में उड़कर श्रीलंका यात्रा की
  • उन्होंने यक्षों और दुष्ट शक्तियों को परास्त किया, और भूमि को बौद्ध धर्म के योग्य बनाया।

📚 स्रोत: Mahāvaṃsa, Chapter I
🧠 प्रश्न: क्या उड़कर भूमि शुद्ध करना वैज्ञानिक दृष्टिकोण कहलाता है?

🐅 II. विजयर की उत्पत्ति — सिंह और महिला से जन्म

“विजयर का जन्म एक महिला और सिंह के संयोग से हुआ था।”

  • महावंश के अनुसार, विजयर (श्रीलंका के पहले राजा) एक सिंह और मानव की संतान थे।
  • यह कथा पूरी तरह से मिथकीय जीवविज्ञान पर आधारित है।

📚 स्रोत: Mahāvaṃsa, Chapter VI
🧠 प्रश्न: क्या ये कथा DNA टेस्ट पास कर सकती है?

👹 III. यक्षिणी कुवेणी और उसकी जादुई शक्तियाँ

  • विजयर की पत्नी कुवेणी एक यक्षिणी थी जो रूप बदल सकती थी।
  • वह दुश्मनों को धोखा देने के लिए माया रचती थी

📚 स्रोत: Mahāvaṃsa, Chapter VII
🧠 प्रश्न: जब हनुमान की माया या रावण की लंका को “मिथक” कहा जाता है, तो कुवेणी की माया क्या है?

🕊️ IV. बुद्ध का दैवी संरक्षण और उपुल्वण देवता

  • बुद्ध ने उपुल्वण देवता (बाद में विष्णु से जोड़े गए) को लंका का रक्षक नियुक्त किया
  • यह देवताओं के द्वारा राष्ट्र रक्षा की भावना है, जो Science Journey हिंदू धर्म में अक्सर mock करता है।

📚 स्रोत: Mahāvaṃsa, Chapter I
🧠 प्रश्न: जब विष्णु द्वारा पृथ्वी रक्षा “पाखंड” कहलाता है, तो उपुल्वण देवता को बुद्ध का नियुक्त करना क्या “क्लैरिटी” है?

🔍 Science Journey की चयनात्मक दृष्टि:

धर्मचमत्कारिक बातेंScience Journey की प्रतिक्रिया
हिंदू धर्महनुमान उड़ते हैं, राक्षसों का वध“Myth, superstition, irrational”
महावंशबुद्ध उड़ते हैं, सिंह-पुत्र राज करते हैं“इतिहास”, “धम्म गाथा”, “गौरव”

➡️ यह वही चयनात्मक प्रमाणवाद (Selective Rationalism) है जहाँ “साइंस” का उपयोग केवल हिंदू प्रतीकों को नीचा दिखाने के लिए किया जाता है।

“जब अपने ग्रंथों में उड़ने वाले बुद्ध, यक्षिणी प्रेमिकाएं, और सिंह की संतानें हैं—तो कृपया ‘वैज्ञानिक सोच’ का प्रमाणपत्र बाँटना बंद कीजिए।”

Science Journey के कुछ विचार बहुत ही चिन्त्य हैं-

  • Kalama Sutta का उपयोग तब किया जाता है जब Tripitaka उनकी बातों से मेल न खाए।
  • बौद्ध धर्म के भीतर देवता, पुनर्जन्म, भूत जैसे अनेक तत्व हैं, जिन्हें Neo-Buddhists “अंधविश्वास” कहकर खारिज कर देते हैं—जबकि वही तत्व ब्राह्मण-विरोध के लिए selectively प्रयोग किए जाते हैं।
  • ब्राह्मण आगंतुकों पर कटाक्ष, तिरस्कार और अपमानजनक भाषा, जबकि OBC/SC/ST अतिथियों को सम्मानपूर्वक मंच देना—यह वैज्ञानिक विवेक नहीं, भावनात्मक फ्रेमिंग है।

📌 यह नव-बौद्धवाद नहीं, केवल “Ambedkarite Propaganda” है जिसे बुद्ध के नाम पर चलाया जा रहा है।

📚 शोध से निष्कर्ष:

  • अशोक ने धर्म का प्रयोग सत्ता को स्थिर करने के लिए किया
  • उनके नैतिक बदलाव की कहानी सूत्रबद्ध किंवदंती मात्र है
  • बौद्ध ग्रंथों में ही अशोक को घृणित अपराधों में लिप्त दिखाया गया है
  • ‘प्रियदर्शी’ कहने का अभ्यास एक वैयक्तिक असुरक्षा की भरपाई हो सकता है

अशोक का प्रचार एक गहरे वैचारिक अभियान का हिस्सा रहा है—जहाँ हिंसा को छुपाकर करुणा का मुखौटा पहनाया गया।

“जब राम से आधार कार्ड मांगा जाता है
और अशोक की 84,000 स्तूपों की कहानी पर आंख मूंद ली जाती है—
तो यह शोध नहीं, षड्यंत्र होता है।”

हम न राम को छोड़ सकते हैं, न बुद्ध को अपमानित कर सकते हैं।
लेकिन हम उन विचारधाराओं को जरूर चुनौती देंगे जो
बुद्ध और अशोक के नाम पर भारत की परंपरा को तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।