भगवान बुद्ध का जीवन, उनकी शिक्षाएं और उनका धर्म का दृष्टिकोण विश्व में अनूठा और बहुमूल्य माना जाता है। किंतु समय के साथ यह धारणा बनाई गई कि भगवान बुद्ध ने सनातन धर्म से अलग कोई नई परंपरा बनाई। जबकि उनके उपदेशों और त्रिपिटक ग्रंथों में स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि बुद्ध का गहरा संबंध सनातन धर्म, चार वर्ण और वेदों से था। दरअसल वह स्वयं सनातनी थे | इस लेख में, हम महापदान सुत्त, अस्सलायन सुत्त, और धम्मपद में आए प्रमाणों को देखेंगे जो भगवान बुद्ध के सनातनी हिंदू धर्म से गहरे जुड़ाव को सिद्ध करते हैं।
इस विषय को समझने के लिए हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –
सबसे पहले हम त्रिपिटक की व्यवस्था समझ लेते हैं | विनय पिटक, सुत्त पिटक और अभिधम्म पिटक इनको संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है | इनमें भगवान् बुद्ध की प्रामाणिक शिक्षा पायी जाती है |

1. महापदान सुत्त में सनातन धर्म और वेदों का उल्लेख
ऊपर के चित्र से आप देख पा रहे होंगे की सुत्त पिटक में दीघ निकाय आता है | इसपर महापंडित भिक्षु महापंडित राहुल सांकृत्यायन की हिंदी टीका उपलब्ध होती है | इसे आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –

महापदान सुत्त, जो दीघ निकाय का हिस्सा है, में बुद्ध की शिक्षा और उनके पूर्व जन्मों का वर्णन मिलता है। इस सुत्त में भगवान बुद्ध के द्वारा वेदों और सनातन धर्म के तत्वों का उल्लेख हुआ है। महापदान सुत्त में सात बुद्धों की कथा मिलती है, जिनमें से गौतम बुद्ध आखिरी बुद्ध हैं। यहां भगवान बुद्ध का यह कहना कि उनके पूर्व जन्म भी एक धार्मिक परंपरा में रहे हैं, यह संकेत करता है कि उनके विचार और मान्यताएं वेदों और सनातन धर्म के सिद्धांतों पर आधारित थीं।


यहाँ स्पष्ट शब्दों में उन्होंने बताया है कि जितने भी प्राचीन बुद्ध थे चाहे वो कस्सप बुद्ध हो चाहे शिखी चाहे कोणागमन – सबके सब या तो ब्राह्मण थे या तो क्षत्रिय थे | यहाँ तक कि उन्होंने यह भी स्वीकारा है कि वह क्षत्रिय कुल में पैदा हुआ | दरअसल बौद्ध धर्म में यह मान्यता है कि कोई भी बुद्ध या तो ब्राह्मण कुल में पैदा होता है या तो क्षत्रिय कुल में | क्या इससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह स्वयं सनातनी क्षत्रिय हिन्दू थे?
2. अस्सलायन सुत्त में चार वर्णों का समर्थन
सुत्त पिटक में ही मज्झिम निकाय आया है | इस पर भी त्रिपिटकाचार्य श्री राहुल सांकृत्यायन की हिंदी टीका आती है | इसे आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –

अस्सलायन सुत्त, जो मझ्झिम निकाय का हिस्सा है, में एक ब्राह्मण अस्सलायन और बुद्ध के बीच संवाद का वर्णन है। इस संवाद में अस्सलायन का कहना था कि ब्राह्मण अन्य वर्णों से श्रेष्ठ हैं। बुद्ध ने यहाँ अस्सलायन के इस दृष्टिकोण को चुनौती दी और बताया कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र सभी समान हैं और कर्मों के आधार पर ही सम्मान का निर्धारण होता है।

अस्सलायन सुत्त में भगवान बुद्ध यह कहते हैं कि चार वर्णों का विभाजन गुणों और कर्मों पर आधारित है, न कि किसी जन्मसिद्ध अधिकार पर। उन्होंने वर्ण व्यवस्था का समर्थन इस आधार पर किया कि यह समाज में विभिन्न जिम्मेदारियों को साझा करने का एक साधन है, न कि भेदभाव का। बुद्ध का यह दृष्टिकोण सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था के मूल सिद्धांतों के अनुकूल है, जहाँ वर्णों का निर्धारण कर्मों पर आधारित है, न कि जन्म पर। इस सुत्त के माध्यम से बुद्ध ने समाज में वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया और यह बताया कि धार्मिकता और पवित्रता का अधिकार किसी भी वर्ण का व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।
इससे यह सिद्ध हो जाता है कि सनातन हिन्दू धर्म तथाकथित बौद्ध धर्म से अधिक प्राचीन है |
3. धम्मपद में सनातन धर्म के तत्वों का उल्लेख
सुत्त पिटक के खुद्दक निकाय में धम्मपद आया है | यह बौद्ध धर्म के सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक है | इसमें भगवान बुद्ध के शिक्षाओं का संकलन है। इसमें कई श्लोक और उपदेश हैं जो वेदों और सनातन धर्म के सिद्धांतों से मेल खाते हैं। इस पर भदन्त आनंद कौशल्यायन की हिंदी टीका आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –

इसके अंतिम अध्याय को ब्राह्मणवग्गो के नाम से जाना जाता है |


धम्मपद के श्लोक 385 और 386 में बुद्ध कहते हैं कि सच्चा ब्राह्मण वही है जो निर्भय और ध्यानी होता है | उन्होंने कहा है कि ऐसे व्यक्ति को वह भी ब्राह्मण कहते हैं | यह उपदेश वेदों की शिक्षा से मेल खाता है, जहाँ ब्राह्मण का अर्थ केवल जन्म से नहीं, बल्कि आचरण से होता है। बुद्ध के विचारों में भी यही सिद्धांत देखने को मिलता है कि किसी का वास्तविक मूल्य उसके कर्मों में है, न कि उसके जन्म में।
आगे श्लोक 387 में वह यह भी कहते हैं कि सूर्य दिन में चमकता है चन्द्रमा रात में , क्षत्रिय कवच पहन कर और ब्राह्मण ध्यान करके | इससे यह सिद्ध होता है कि नहीं कि वह भी ब्राह्मण और क्षत्रिय मानते हैं और वह भी कर्म के आधार पर ?
त्रिपिटक ग्रंथों में वर्ण व्यवस्था का समर्थन
त्रिपिटक के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भगवान बुद्ध ने हिंदू समाज की वर्ण व्यवस्था को नकारा नहीं, बल्कि उसे कर्मों और गुणों पर आधारित माना। महापदान सुत्त और अस्सलायन सुत्त में वर्णों का विवरण इस बात का प्रमाण है कि बुद्ध इस व्यवस्था के प्रति आदर भाव रखते थे, किन्तु उन्होंने इसके दुरुपयोग की आलोचना की। उन्होंने कहा कि समाज में श्रेष्ठता जन्म से नहीं, कर्म से मानी जानी चाहिए। बुद्ध की यह शिक्षा भी वेदों में वर्णित वर्ण व्यवस्था की प्राचीन धारणाओं से मेल खाती है।
भगवान बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं का मूल्यांकन करने पर यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने सनातन धर्म के कई मूलभूत सिद्धांतों को स्वीकार किया और उनका पालन किया। उनके उपदेशों में वेदों का सम्मान, चार वर्णों की व्यवस्था का समावेश, और मोक्ष की खोज जैसी बातें स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती हैं। बौद्ध धर्म का स्वरूप भले ही स्वतंत्र दिखता है, किन्तु इसके मूल में वही सनातनी सिद्धांत हैं जो हिंदू धर्म में प्रचलित थे।
महापदान सुत्त में पूर्व बुद्धों का उल्लेख, अस्सलायन सुत्त में चार वर्णों की शिक्षा और धम्मपद में वेदों के तत्वों का समावेश यह सिद्ध करता है कि भगवान बुद्ध का दृष्टिकोण सनातन धर्म से अलग नहीं था। उनका जीवन और उनकी शिक्षाएं सनातन धर्म के मूलभूत सिद्धांतों का विस्तार मानी जा सकती हैं।
हिन्दू धर्म छोड़ने की बात कहीं नहीं कही
इसके अतिरिक्त उन्होंने यह कहीं नहीं कहा है कि उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़ दिया ! उन्होंने एक नए पंथ को जन्म दिया | धर्म एक ही है पंथ अनेक होते हैं | पंथों में मतभेद मान्य है | उदाहरणस्वरुप आदिजगद्गुरु भगवान् शंकराचार्य ने ब्रह्मसूत्र पर अद्वैतपरक टीका लिखी | बाद के वैष्णव आचार्य ने उसका खंडन किया | लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि आदिशंकराचार्य सनातनी नहीं थे अथवा प्राचीन वैष्णव आचार्य सनातनी नहीं थे | एक घर में जाने के अनेक रास्ते हो सकते हैं और कोई एक व्यक्ति एक साथ हर मार्ग पर नहीं चल सकता | पंथों का भेद मान्य है – लेकिन धर्म एक ही होता है !
उपसंहार
भगवान बुद्ध के विचारों का गहन अध्ययन और त्रिपिटक के प्रमाण हमें यह समझने में सहायक होते हैं कि बुद्ध का संबंध सनातन धर्म से था। उनके उपदेश वेदों के अनुरूप हैं, और चार वर्णों का उनके उपदेशों में स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है। उनकी शिक्षाएं एक स्वतंत्र धर्म का निर्माण नहीं करतीं, बल्कि सनातन धर्म के सिद्धांतों का समर्थन करती हैं। इस तथ्य को देखते हुए यह कहना उचित है कि भगवान बुद्ध सनातनी हिंदू परंपरा के ही एक महान संत थे, जिनकी शिक्षाओं ने समाज में नई दिशा और दृष्टिकोण दिया।
Pingback: क्या सनातन धर्म सनातन नहीं है ? : एक शास्त्रीय प्रतिवाद - शास्त्र