विविध

क्या सनातन धर्म सनातन नहीं है ? : एक शास्त्रीय प्रतिवाद

परिचय सनातन धर्म की वैदिक परंपरा को लेकर अनेक विवाद सामने आते हैं। विशेषकर, नवाचार अम्बेडकरवादी बौद्ध धर्म के अनुयायी यह दावा करते हैं कि उनका धर्म सनातन है, क्योंकि धम्मपद में ‘एष धम्मो सनन्तनो’ वाक्य मिलता है। यह दावा किया जाता है कि बौद्ध धर्म समयातीत और शाश्वत है, जबकि हिंदू धर्म को अक्सर […]

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भगवान् बुद्ध सनातनी थे : त्रिपिटक से प्रमाण

भगवान बुद्ध का जीवन, उनकी शिक्षाएं और उनका धर्म का दृष्टिकोण विश्व में अनूठा और बहुमूल्य माना जाता है। किंतु समय के साथ यह धारणा बनाई गई कि भगवान बुद्ध ने सनातन धर्म से अलग कोई नई परंपरा बनाई। जबकि उनके उपदेशों और त्रिपिटक ग्रंथों में स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि बुद्ध का गहरा संबंध

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यज्ञ की वैज्ञानिकता पर कठोर प्रहार: शोध पत्रों के साथ आलोचकों का खंडन

आज का समय ऐसा है जहाँ प्राचीन वैदिक विज्ञान यज्ञ को बिना प्रमाण या शोध के अंधविश्वास कहकर नकार दिया जाता है। यज्ञ के पीछे का विज्ञान, जब आधुनिक शोध के माध्यम से परखा गया, तो इसके कई महत्वपूर्ण फायदे साबित हुए। इस लेख में हम विभिन्न शोध पत्रों का सहारा लेकर यज्ञ की वैज्ञानिकता

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कौषीतकि उपनिषद् बनाम वेदांत: क्या ब्रह्म अन्यायी है ?

कौषीतकी उपनिषद के एक श्लोक में वर्णित है:“एष ह्येवैनं साधुकर्म कारयति तं यमेभ्यो लोकेभ्यो उन्निनीषत एष उ एवैनमसाधु कर्म कारयति तं यमधो निनीषते।” (अध्याय 3 मन्त्र 9) इसका अर्थ यह है कि ब्रह्म उस व्यक्ति से शुभ कर्म कराते हैं जिसे वे ऊर्ध्व लोकों की ओर उन्नति कराना चाहते हैं, और वही ब्रह्म उस व्यक्ति

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आर्य समाज का चौंकाने वाला खुलासा: स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया मूर्ति पूजा का समर्थन

स्वामी दयानंद सरस्वती, जिन्होंने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की, अपने एकेश्वरवाद के समर्थन और मूर्ति पूजा के विरोध के लिए जाने जाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य वैदिक धर्म के शुद्ध रूप में पुनरुत्थान करना था। स्वामी दयानंद के अनुसार, हिंदू धर्म में समय के साथ कई भ्रष्टाचार और अधार्मिक प्रथाएं समाहित हो गईं,

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विज्ञान ने आखिरकार धर्म को माना – शोध पत्रों से प्रमाण

आजकल के कुछ आलोचक कहते हैं कि धर्म विज्ञान के साथ कदम से कदम मिलाकर नहीं चल पा रहा है और यह पुरानी धारणाओं में जकड़ा हुआ है। लेकिन, क्या यह सच है? क्या वाकई में धर्म, विज्ञान से पीछे रह गया है? इस ब्लॉग पोस्ट में हम तथ्यों और 21वीं सदी की शोधपत्रों एवं

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तर्कसंगत लेकिन गलत : प्राचीन शास्त्रों की गलत व्याख्या का खतरा

प्राचीन भारतीय शास्त्रों का महत्व केवल उनकी पुरातनता में नहीं, बल्कि उनकी गहनता और सत्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में है। चाहे वह वेद हों, उपनिषद हों, भगवद गीता या रामायण, इन सभी ग्रंथों में एक अद्वितीय संदेश है—सत्य, धर्म और मानव जीवन के उच्चतम आदर्श। लेकिन अफसोस, आज के दौर में कुछ लोग इन

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