🌑 भूमिका – नव बौद्धों और स्वघोषित आचार्य की नयी चाल
आज एक नया ट्रेंड चल पड़ा है —
नव बौद्ध यह फैला रहे हैं कि छठ बौद्ध पर्व है, जबकि आत्मघोषित “आचार्य” यह कह रहे हैं कि यह केवल पर्यावरण शुद्धि का पर्व है, और केवल पर्यावरण शुद्धि ही वास्तविक पूजा है।
दोनों का मकसद एक ही है —
छठ को वेदों, पुराणों और मातृ-शक्ति की जड़ों से काट देना।
नव बौद्ध इसे “हिन्दू रीब्रांडिंग” कहकर अपना बताना चाहते हैं, और तथाकथित तर्कशील गुरू इसे केवल प्रकृति सुधार या पर्यावरण सुधार कहकर परिवर्तित करना चाहते हैं।
पर इस बार जवाब मिलेगा — वेद की भाषा में, पुराण की तर्क-शक्ति से।
इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –
दरअसल छठ पर्व के अवसर पर सूर्य की पूजन का विधान तो है ही, छठी मैया (षष्ठी माता) के पूजन का भी विधान है | ये दोनों वेदसम्मत हैं | महाभारत और पुराणों में षष्ठी देवी का वर्णन आया है | इनका एक नाम देवसेना भी है और ये कार्तिकेय जी की धर्मपत्नी कही गयी हैं |
देखिये महाभारत खंड 2 वनपर्व अध्याय 229-

🌞 भाग 1 – ऋग्वेद – सूर्य उपासना का मूल
“उदु त्यं जातवेदसं देवं वहन्ति केतवः ।
दृशे विश्वाय सूर्यं ॥”
1/50/1

“तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिष्कृदसि सूर्य ।
विश्वमाभासि रोचनम् ॥”1/50/4

यह स्पष्ट प्रमाण है कि सूर्य के अर्घ्य और सार्वजनिक दर्शन का विधान वैदिक युग से चला आ रहा है।
नव बौद्ध इसे “बौद्ध सूर्य साधना” कहकर अपना बताने की कोशिश करते हैं, पर बौद्ध ग्रंथों में “सूर्योपासना” का एक भी सूक्त नहीं।
वेद में सूर्य “दृशे विश्वाय” — सभी को दृष्टिगोचर होनेवाले देव — कहे गए हैं,
यही परंपरा आज भी छठ में जल में खड़े होकर अर्घ्य देने के रूप में जीवित है।

🌸 भाग 2 – ऋग्वेद (2/32/8): सिनीवाली मन्त्र – मातृत्व की वैदिक देवी
यह मन्त्र तीन देवियों — सिनीवाली, राका और सरस्वती — का आवाहन करता है।

यहाँ सिनीवाली वही हैं जिन्हें बाद में षष्ठी देवी कहा गया,
जो संतान, मातृत्व और पारिवारिक कल्याण की प्रतीक हैं।
अर्थात् छठ का स्त्री-केंद्रित स्वरूप किसी बौद्ध नारीवाद की देन नहीं, बल्कि ऋग्वेद का ही विस्तार है।
यह मातृ-शक्ति का वेदसम्मत उत्सव है — बुद्ध की नहीं, ब्रह्म की वाणी से निकला हुआ।
🔆 भाग 3 – महाभारत (वनपर्व, अध्याय 223+)
देवसेना जी का नाम मत्स्य पुराण अध्याय 159 और ब्रह्माण्ड पुराण उत्तर भाग अध्याय 30 में भी आया है –




(Note – The cover pic is of poorv bhag, but it has come in the second part of chaukhamba. The link refers to right file.)



हालाँकि इनके विवाह की विस्तृत कथा महाभारत में आयी है !
महाभारत के वनपर्व के अध्याय में यह वर्णन आया है कि देवसेना नाम की एक देवी को इंद्र केशी नामक एक राक्षस से बचाते हैं |


फिर अध्याय २२४ में यह बताती हैं की इनका नाम देवसेना है, ये ब्रह्मा जी की संतान हैं और इनकी एक दैत्यसेना नामक बहन भी हैं | बाद में ब्रह्मा जी भविष्यवाणी करते हैं की स्कन्द इनके पति होंगे |


अतएव अध्याय 229 में इंद्र इनकी शादी कार्तिकेय से करवा देते हैं –

आगे अध्याय 232 में कार्तिकेय का एक नाम षष्ठीप्रिय भी कहा गया है –

बौद्ध या आधुनिक “तथाकथित पर्यावरणवादी गुरु” जिस परंपरा की खिल्ली उड़ा रहे हैं,
वह महाभारत काल से सिद्ध, वैदिक देवी का रूप है।

🌼 भाग 4 – ब्रह्मवैवर्त पुराण
ब्रह्म वैवर्त पुराण के प्रथम खंड – ब्रह्म खंड अध्याय 8, द्वितीय खंड प्रकृति खंड अध्याय 1,43 और गणपति खंड अध्याय 17 में इनके बारे में अनेक वर्णन आये हैं |
ब्रह्म खंड अध्याय 8


यहां यह विचारणीय है की आगे प्रकृति खंड अध्याय 43 में इन्हे ब्रह्मा जी की मानसी संतान कहा गया है –

प्रकृति खंड अध्याय 1



गणपति खंड अध्याय 17


प्रकृति खंड अध्याय 43

यही वही अध्याय है जहाँ राजा प्रियव्रत को षष्ठी-व्रत करने पर संतान प्राप्ति होती है।
इस अध्याय में इनकी विस्तृत कथा के साथ इनका मन्त्र, ध्यान और स्तोत्र भी वर्णित है –





यहीं से “षष्ठी पूजन” धीरे-धीरे “छठ पर्व” के रूप में लोक में आया।
यही कथा श्रीमद्देवी भागवत के नवम स्कंध के 46वे अध्याय में भी लगभग हूबहू आया है –

यह साक्ष्य उस आचार्यीय पर्यावरणवाद को झूठा साबित करता है जो कहता है —
“छठ का उद्देश्य सिर्फ़ प्रकृति की शुद्धि है।”
नहीं — यह देवता और देवी दोनों की संयुक्त साधना है।

🔱 भाग 5 – नव बौद्ध मिथक बनाम वैदिक प्रमाण
| नव बौद्ध दावा | शास्त्रीय उत्तर |
|---|---|
| छठ बौद्ध पर्व है | बौद्ध ग्रंथों में सूर्योपासना या षष्ठी-व्रत का एक भी उल्लेख नहीं; जबकि ऋग्वेद, महाभारत, पुराण तीनों में हैं। |
| छठ पर्यावरण-शुद्धि मात्र है | ब्रह्मवैवर्त पुराण में स्पष्ट – षष्ठी देवी “पुत्रदायिनी” हैं, न कि “ऑक्सीजन डोनर।” |
| सूर्य पूजा विज्ञानविरोधी है | ऋग्वेद में सूर्य “ज्योतिष्कृत्” कहे गए हैं – प्रकाश, जीवन और ऊर्जा के स्रोत के रूप में। यह विज्ञान का पूर्वज है। |
🧠 भाग 6 – रिवाजों का मनोविज्ञान: अवचेतन मन में धर्म की जड़ें
2017 में Hobson, Gino, Norton और Xygalatas द्वारा प्रकाशित शोध (“The Psychology of Rituals”) में स्पष्ट कहा गया है कि धार्मिक या सांस्कृतिक रिवाज सिर्फ़ प्रतीक नहीं, बल्कि मस्तिष्क के गहरे अवचेतन स्तर पर कार्य करने वाली सामाजिक औषधि (social neuro-medicine) हैं।
यह शोध बताता है कि जब व्यक्ति किसी सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेता है — जैसे छठ में जल में खड़े होकर अर्घ्य देना —
तो उसके मस्तिष्क में सामाजिक एकता, आत्म-नियंत्रण और उद्देश्यबोध से जुड़े न्यूरल सर्किट सक्रिय होते हैं।
इससे तनाव घटता है, आत्म-संतोष बढ़ता है, और सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।

दूसरे शब्दों में — छठ पूजा जैसी परम्पराएँ व्यक्ति और समाज दोनों के मानसिक संतुलन का जैविक तंत्र (bio-psychological mechanism) हैं।
अब जब नव बौद्ध और नकली आचार्य इसे “सिर्फ़ पर्यावरण शुद्धि” या “intellectual awareness drive” कहकर
इसकी आत्मा निकाल देते हैं, तो वे अनजाने में लाखों लोगों को मानसिक और सामाजिक रूप से रिक्त बना रहे हैं।
क्योंकि बुद्धि से बाँधने वाला ज्ञान तर्क देता है, लेकिन रिवाज से जुड़ने वाला धर्म शांति देता है।
इसलिए जो लोग छठ को “पर्यावरण अभियान” बना रहे हैं —
वे न केवल वेद का अपमान कर रहे हैं, बल्कि मनोविज्ञान और समाजशास्त्र की वैज्ञानिक समझ का भी गला घोंट रहे हैं।
धर्म का स्थान प्रयोगशाला में नहीं, मानव हृदय के अवचेतन में है —
और वही छठ का असली मंदिर है।
⚖️ भाग 7 – कानूनी दृष्टि: धर्म पर हमला मज़ाक नहीं, अपराध है
आपकी फ़ाइल में उद्धृत:
- IPC 295A: “धार्मिक भावनाएँ आहत करने का दंडनीय अपराध।”
👉 3 वर्ष तक कारावास या जुर्माना या दोनों। - IPC 298: “शब्दों या संकेतों से धार्मिक भावना आहत करना।”
👉 1 वर्ष तक कारावास या जुर्माना।
इसलिए जो लोग छठ को “बौद्ध” या “सिर्फ़ इकोलॉजिकल एक्टिविटी” कह रहे हैं —
वे केवल बौद्धिक अपराधी नहीं, कानूनी अपराधी भी हैं।
🌅 भाग 8 – जब पर्व आत्मा खो दे: बुद्धिवाद बनाम चेतना का सत्य
छठ को केवल “पर्यावरण अभियान” या “सामाजिक स्वच्छता कार्यक्रम” कह देना उतना ही मूर्खतापूर्ण है
जितना रामायण को “सिर्फ़ पारिवारिक कथा” और गीता को “मोटिवेशनल बुकलेट” कहना।
पर्व का उद्देश्य केवल बाहरी सफाई नहीं, अंतर की शुद्धि है।
जो लोग इसे मात्र बुद्धिवादी व्याख्याओं में बाँधने की कोशिश कर रहे हैं —
वे वेद की लौ को तर्क की टॉर्च से नापने की गलती कर रहे हैं।
धर्म तर्क से नहीं, अनुभव से समझा जाता है।
रिवाज, पूजा और व्रत — ये सब अवचेतन मन के माध्यम हैं जिनसे व्यक्ति दैवी चेतना से जुड़ता है।
विज्ञान मस्तिष्क की परतें माप सकता है, पर आस्था की गहराई नहीं।
जब छठ में स्त्री जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती है,
तो वह किसी “इकोलॉजिकल एक्ट” में नहीं, बल्कि ब्रह्माण्ड के साथ समरसता में खड़ी होती है।
यही वह क्षण है जब व्यक्ति स्वयं और सृष्टि के बीच का भ्रम मिटा देता है।
इसलिए—
जो नव बौद्ध इसे “बौद्ध पर्व” बताकर अपना बना रहे हैं,
और जो झूठे आचार्य इसे “इंटेलेक्चुअल स्पिरिचुअलिटी” कहकर खाली बना रहे हैं,
दोनों ही उस मूल सत्य से अंधे हैं जिसे वेदों ने हज़ारों वर्ष पहले कहा था—
“सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च।”
(ऋग्वेद 1/115/1 — “सूर्य सम्पूर्ण जगत और चेतन का आत्मा है।”)
छठ का यह प्रकाश केवल सूर्य का नहीं, सद्बुद्धि का पुनर्जन्म है।
और जो इस प्रकाश को हाइजैक करने की कोशिश करेगा —
वह इतिहास में नहीं, अंधकार में दर्ज़ होगा।

