📌 भूमिका – एक प्रश्न
श्राद्ध सिर्फ एक रस्म है?
क्या ये केवल “आस्था” या “डर” का खेल है?
या फिर इसके पीछे छिपा है एक गहन मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विज्ञान?
जब कुछ तथाकथित “नवबौद्धिक” सोशल मीडिया पर बैठकर हजारों साल पुराने परंपरागत अनुष्ठानों को “superstition” यानी अंधविश्वास कहकर खारिज कर देते हैं — तो असली प्रश्न उठता है:
🧠 क्या आपने इन परंपराओं के पीछे छिपे वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आधारों को समझने का प्रयास किया है?
🧬 क्या आपने कभी इंटर-जनरेशन Empathy और Neuro-Theology पर हुए शोध पढ़े हैं?
इस ब्लॉग में हम एक स्वघोषित “आचार्य” और उसके शिष्यों की उन बातों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसेंगे, जहाँ वे खुलकर श्राद्ध को “Superstition” और “और मूर्खता” कहते हैं।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती।
यह केवल विचारधारा का मतभेद नहीं है —
यह सार्वजनिक आस्था का संवैधानिक अपमान भी है।
👉 इस ब्लॉग में आपको मिलेंगे:
- विश्वस्त शोधपत्रों से प्रमाण
- रामायण, पुराण और वेद से सटीक श्लोक
- साइकोलॉजी और क्वांटम फिजिक्स की दृष्टि से विश्लेषण
- और IPC/IT Act की वे धाराएँ जिनसे इन पर झूठ फैलाने का मामला बनता है
अब तय आपको करना है –
श्राद्ध अंधविश्वास है, या विज्ञान की उपेक्षित शाखा?
इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है :
🎬 2. वीडियो क्लिप – जब शिष्य ने किया श्राद्ध का अपमान
इस श्रृंखला की शुरुआत होती है एक चौंका देने वाले वीडियो से — जिसमें आर्य प्रशांत के शिष्य ने खुलेआम श्राद्ध को “अंधविश्वास” और मूर्खता कहा।
दरअसल स्वघोषित आचार्य के अंध भक्तों का एक चैनल यूट्यूब पर है जिसका नाम है: अनुगामी

वहाँ पर इनके अंधभक्त ने एक शॉर्ट्स डाली है जिसका शीर्षक रखा है “मूर्खता दोनों तरफ है #jihad #superstition”

इसमें इन्होने श्राद्ध का मज़ाक उड़ाया है |
🗣️ इनकी वीडियो स्वयं देखें :
बहुत संभावना है कि इस वीडियो के बाद वह अपनी शॉर्ट्स डिलीट कर लें, इसलिए प्रमाण स्वरुप यहां पर वह वीडियो भी उपलब्ध कराया जा रहा है –
👀 वीडियो में वह इतने आत्मविश्वास से बोल रहा था मानो विज्ञान ने श्राद्ध की अर्थवत्ता को पूरी तरह नकार दिया हो।
❗ लेकिन वह न तो कोई प्रमाण देता है,
❗ न कोई मनोवैज्ञानिक या वैज्ञानिक शोधपत्र दिखाता है,
❗ और न ही किसी शास्त्रीय स्रोत का उल्लेख करता है।
❓ क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या फिर सामाजिक विद्वेष फैलाने की शुरुआत?
🧨 इस तरह की बातों से न केवल हिंदू परंपराओं का अपमान होता है, बल्कि संवेदनशील मनों में अपराधबोध, द्वंद्व और भ्रम उत्पन्न होता है।
📸 इस वीडियो क्लिप को हमने शोध के उद्देश्य से इस ब्लॉग में शामिल किया है, ताकि publicly available material को fair use के तहत critically examine किया जा सके।
🔒 कानूनी नोट:
यह वीडियो सार्वजनिक डोमेन में है और इसे विश्लेषण के उद्देश्य से पेश किया गया है। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति या समुदाय को अपमानित करना नहीं, बल्कि वैचारिक स्पष्टता और वैज्ञानिक विवेचना करना है।
👵👶 3. अंतरपीढ़ीय सहानुभूति – रिसर्च पेपर 1
क्या केवल श्रद्धा के नाम पर परंपराएं निभाई जाती हैं? या उनके पीछे गहरी मनोवैज्ञानिक संरचना है?
🧪 एक 2024 का शोधपत्र – Yin et al. (University of Southampton और Peking University के प्रोफेसरों द्वारा प्रकाशित) – 5 प्रयोगों में यह सिद्ध करता है कि:
📌 मुख्य निष्कर्ष:
- Nostalgia (स्मृतियों की भावनात्मक पुनरावृत्ति) से लोगों में अनुष्ठानों को निभाने की प्रवृत्ति बढ़ती है।
- ये अनुष्ठान (Rituals) किसी सामाजिक दबाव से नहीं, बल्कि भावनात्मक जुड़ाव से निकलते हैं।
- जब लोग परिवार, पूर्वजों और जीवन के भावनात्मक क्षणों को याद करते हैं, तो वे श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों को अधिक गहराई से निभाते हैं।
- इस तरह के अनुष्ठान जीवन को अर्थ देने वाले क्रियाकलाप बन जाते हैं — न कि केवल धार्मिक रस्में।
🔬 शोध की रचना:
- पाँच प्रयोगों में 1,000+ प्रतिभागियों पर अध्ययन किया गया (अमेरिका और चीन दोनों में)।
- जिन लोगों को पहले उनकी पुरानी यादों में डुबोया गया (nostalgia priming), उन्होंने बाद में:
- ज़्यादा उत्साह से अनुष्ठानों में भाग लिया।
- जीवन को अधिक अर्थपूर्ण महसूस किया।
🌿 श्राद्ध का क्या संबंध?
श्राद्ध केवल पितरों के लिए तर्पण नहीं, यह एक भावनात्मक संकल्प है — जो बीते हुए कल से वर्तमान को जोड़ता है।
यह शोध यह स्पष्ट करता है कि ऐसे अनुष्ठानों से मानसिक स्थिरता, संबंधों की गहराई और जीवन का उद्देश्य मज़बूत होता है।
📎 निचोड़:
“जो अतीत को सहेजता है, वही भविष्य को संवार सकता है।”
इसलिए जो लोग श्राद्ध का मज़ाक उड़ाते हैं, वे न केवल परंपरा, बल्कि मनोविज्ञान और विज्ञान दोनों की अवहेलना कर रहे हैं।
इस शोधपत्र को निःशुल्क डाउनलोड करें:

🔬 4. वैज्ञानिक प्रमाण – रिसर्च पेपर 2
क्या पारिवारिक कहानियाँ मानसिक स्वास्थ्य को सुधार सकती हैं?
🧠 पेपर का शीर्षक: The Role of Intergenerational Family Stories in Mental Health and Wellbeing
✍️ लेखक: Alexa Elias (King’s College London) और Adam D. Brown (NYU)
📅 प्रकाशन: Frontiers in Psychology, 2022
🔗 PDF लिंक
📚 मुख्य निष्कर्ष:
- जब परिवार में पूर्वजों की कहानियाँ (family stories) अगली पीढ़ियों को सुनाई जाती हैं, तो उससे बच्चों और युवाओं में कम anxiety, अधिक आत्मविश्वास, और सकारात्मक पारिवारिक संबंध विकसित होते हैं।
- माता-पिता, विशेषकर माताएँ, जब अपनी जीवनकथाएँ भावनात्मक गहराई के साथ बच्चों से साझा करती हैं, तो इससे बच्चों का मानसिक संतुलन और पहचान (identity) मजबूत होती है।
- ये कहानियाँ न केवल भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाती हैं, बल्कि PTSD जैसे मानसिक विकारों से जूझ रहे व्यक्तियों में भी उपचार में सहायक हो सकती हैं।
👩👧👦 संस्कृति और पीढ़ियों को जोड़ने वाला माध्यम:
पेपर यह भी बताता है कि “biological” परिवार के अलावा “chosen families” – जैसे करीबी मित्र या गुरु – से भी जब सांस्कृतिक या व्यक्तिगत कहानियाँ साझा होती हैं, तो वह भी मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकती हैं।
🧬 प्रासंगिकता श्राद्ध से:
श्राद्ध सिर्फ कर्मकांड नहीं है — वह एक माध्यम है जिससे हम अपनी अगली पीढ़ियों को पारिवारिक कहानियों, मूल्यों और भावनात्मक स्मृतियों से जोड़ते हैं। आर्य प्रशांत जैसे लोग जब इसे “अंधविश्वास” कहते हैं, तो वे अनजाने में एक सिद्ध मानसिक स्वास्थ्य उपाय को तोड़ रहे हैं।
🧾 नैतिक प्रश्न:
अगर कोई व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य के ऐसे सिद्ध लाभों वाले सांस्कृतिक कार्यों को खुलेआम बदनाम करे — क्या वह सिर्फ “राय” है या समाज के प्रति अजागरूक हानि?
📖 निचोड़:
यह शोध साफ बताता है — श्राद्ध जैसे अनुष्ठानों की वैज्ञानिक बुनियाद है। ये क्रियाएं लोगों को उनके पूर्वजों से, उनकी कहानियों से और उनके अस्तित्व से जोड़ती हैं। मानसिक स्वास्थ्य की दुनिया इसे हीलिंग प्रक्रिया मानती है, न कि अंधविश्वास।
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📚 5. वाल्मीकि रामायण और नारद पुराण से प्रमाण – श्राद्ध का शास्त्रीय आधार
जब कोई तथाकथित आधुनिक विचारक या उसका शिष्य यह कहता है कि “श्राद्ध सिर्फ एक अंधविश्वास है,” तब ज़रूरी हो जाता है कि हम यह जानें कि क्या वास्तव में हमारे प्राचीन शास्त्रों में इसका कोई आधार है या नहीं।
📖 वाल्मीकि रामायण से प्रमाण
अरण्य कांड, सर्ग 103, में भगवान राम अपने पूर्वजों के लिए पिंडदान करते हैं। यह दर्शाता है कि स्वयं श्रीराम, जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, श्राद्ध और पितृ-तर्पण की परंपरा का पालन करते थे।


👉 यह एक सांकेतिक नहीं, व्यवहारिक उदाहरण है — यदि श्राद्ध केवल अंधविश्वास होता, तो क्या भगवान राम स्वयं उसे करते?
📜 नारद पुराण से प्रमाण
नारद पुराण, उत्तर भाग, अध्याय 46 में स्पष्ट वर्णन मिलता है कि भगवान् राम ने दशरथ जी के लिए पिंड दान किया !
🔎 इससे सिद्ध होता है कि श्राद्ध केवल एक सामाजिक रस्म नहीं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक उत्तरदायित्व भी है, जिसे शास्त्रों ने विधिपूर्वक स्थापित किया है।
⚠️ महत्वपूर्ण बिंदु:
इन प्रमाणों को देखकर यह दावा करना कि “श्राद्ध का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है” — या तो अज्ञानता है, या फिर जानबूझकर की गई वैचारिक तोड़-मरोड़।
📜 6. ऋग्वेद से प्रमाण – श्रुति बनाम स्मृति का झूठा द्वंद्व
आजकल कुछ स्वघोषित आचार्य यह प्रचार करते हैं कि श्राद्ध जैसी परंपराएँ केवल स्मृति ग्रंथों में हैं, वेदों में इनका कोई उल्लेख नहीं है — और इसलिए इन्हें “बाद में जोड़ा गया अंधविश्वास” कहकर नकार दिया जाना चाहिए।
❗ यह तर्क न केवल आधा-सत्य है बल्कि शास्त्रीय रूप से अप्रामाणिक भी।
📘 ऋग्वेद का स्पष्ट प्रमाण
ऋग्वेद – मंडल 10, सूक्त 15 (पितृ सूक्त)
यह पूरा सूक्त पितरों को समर्पित है, जिसमें तर्पण और श्रद्धा से संबंधित मंत्र हैं:

🔍 यह अखंड प्रमाण है कि श्राद्ध और पितृ तर्पण का वेदों में स्पष्ट उल्लेख है — और यह श्रुति परंपरा का ही भाग है, न कि केवल स्मृति का।
⚔️ इसलिए क्या यह वैचारिक छल नहीं?
जब कोई यह कहता है कि “वेदों में नहीं है”, तो वह या तो:
- वेदों को पढ़े बिना बात कर रहा है, या
- जानबूझकर गलत व्याख्या कर रहा है, जिससे समाज की धार्मिक आस्थाएँ कमजोर हों।
🛑 यह न केवल अज्ञानता का प्रचार है, बल्कि समाज में संवेदनशीलता और धार्मिकता को कमजोर करने का षड्यंत्र भी हो सकता है।
अब आगे हम देखेंगे कि इस झूठे प्रचार के पीछे की संगठित विचारधारा क्या है, और इसके कानूनी निहितार्थ क्या हो सकते हैं।
⚖️ 7. IPC और IT Act की धाराएँ + FIR की माँग
जब कोई व्यक्ति या संगठन, सार्वजनिक मंच पर बैठकर श्राद्ध जैसे धार्मिक संस्कारों को ‘अंधविश्वास’ कहता है — और उसे विज्ञान व वेदों के प्रमाणों के बावजूद तिरस्कारपूर्वक खारिज करता है — तो यह केवल मतभेद नहीं, बल्कि कानूनी रूप से आपत्तिजनक आचरण भी बन सकता है।
📢 अपराध या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता?
❌ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनियंत्रित नहीं होता। भारत के संविधान और दंड संहिता में यह स्पष्ट है कि किसी धार्मिक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाली बातों पर सीमाएँ निर्धारित हैं।
🧾 लागू होने वाली धाराएँ:
1. भारतीय दंड संहिता (IPC):
- धारा 295A, 298 – किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए जानबूझकर और दुर्भावनापूर्वक की गई टिप्पणी।
🔸 श्राद्ध को “ग्रैंड नॉनसेंस” कहने पर स्पष्ट रूप से यह धारा लागू हो सकती है। - धारा 153A – धर्म, जाति या संस्कृति के आधार पर वैमनस्य फैलाने वाली बातें या प्रयास।
🔸 संस्कारों को सार्वजनिक रूप से ‘अंधविश्वास’ कहने से समाज में विभाजन और द्वेष फैल सकता है।
2. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act 2000):
- धारा 67 – अश्लील, आपत्तिजनक या धार्मिक रूप से भड़काऊ सामग्री का प्रकाशन या प्रेषण।
🔸 सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से वीडियो में इस प्रकार की बातें प्रसारित करना इस धारा के अंतर्गत आपराधिक हो सकता है।
🧨 प्रश्न :
- ❓ क्या धार्मिक संस्कारों को सार्वजनिक रूप से ‘ग्रैंड नॉनसेंस’ कहना IPC की धारा 295A, 298 के अंतर्गत दंडनीय नहीं है?
- ❓ क्या सोशल मीडिया पर इसे ‘superstition’ बताना IT Act की धारा 67 और IPC 153A के अंतर्गत सांस्कृतिक विभाजन नहीं है?
- ❓ क्या यह कानूनी जाँच का विषय नहीं बनता कि इतनी कठोर बातें कहने वालों पर पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है?
📝 हमारी स्पष्ट अपील:
हम सभी पाठकों और दर्शकों से आग्रह करते हैं कि इस ब्लॉगर और वीडियो को स्थानीय पुलिस, साइबर क्राइम सेल, और धार्मिक संस्थानों तक भेजें। यह विषय अब केवल वैचारिक मतभेद नहीं, बल्कि कानूनी और सामाजिक सुरक्षा का प्रश्न बन चुका है।
📎 अभी कार्रवाई करें — यह सिर्फ संस्कृति की रक्षा नहीं, बल्कि समाज के मानसिक स्वास्थ्य की भी रक्षा है।
👁️🗨️ 8. गुट का मास्टरमाइंड – स्रोत का पर्दाफाश
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन-सा व्यक्ति है जो खुलेआम वेदों और पुराणों की मान्यताओं को “Superstition” कहने का साहस करता है? किसके मार्गदर्शन में यह “Superstition Gang” सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहरों का मज़ाक उड़ाने में लगी है?
उत्तर है — एक स्वयंभू ‘आचार्य’, जो अब तक कई बार प्रमाणों से पराजित होने के बाद भी अपने एकछत्र कथनों को ही अंतिम सत्य घोषित करता है, और जिसे हमने “गाली गुरु” के नाम से पहले भी उजागर किया है।
🎭 कौन है यह ‘गाली गुरु’?
- यह वही हैं जो पहले संस्कृति के विरुद्ध आक्रामक भाषा बोल चुके हैं। वह स्वयं गाली तो नहीं देते लेकिन दूसरों को गाली देने के लिए और आक्रामक व्यवहार के लिए प्रोत्साहित करते हैं |
- जिनके अनुयायी बार-बार दूसरों को अपशब्द कहने में संकोच नहीं करते, जैसा कि हमने Reddit और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देखा है।
- यह वही हैं जो स्वयं को वैदिक विद्वान कहते हैं लेकिन एक भी शुद्ध वेद मंत्र का प्रमाण नहीं देते — सिर्फ मनगढ़ंत तर्क और आक्रामक शैली में वीडियो प्रस्तुति करते हैं।
🧠 अंधभक्ति का मानसशास्त्र:
जब कोई व्यक्ति अपनी बातों को ही परम सत्य मानता है, और हर विरोध करने वाले को ‘संस्कृति से बंधा हुआ’, ‘अज्ञानी’ या ‘Superstitious’ कहकर खारिज करता है — तो यह एक मानसिक प्रवृत्ति है जिसे “Heroic Narcissism” और “Cultic Control Behavior” कहा जाता है।
👉 ऐसे नेतृत्व में अनुयायी अपने सोचने की क्षमता खो बैठते हैं और हर वैचारिक मतभेद को ‘द्रोह’ समझने लगते हैं।
🔎 आगे क्या?
हमारे ब्लॉग और वीडियो श्रृंखला में यह स्पष्ट हो चुका है कि यह केवल एक व्यक्ति की बात नहीं, बल्कि एक संगठित विचारधारा का खेल है, जो परंपरा, विज्ञान और समाज — तीनों के खिलाफ जहरीला प्रचार करती है।
इसलिए अब अगला चरण है —
📽️ प्रमाण सहित दिखाना कि इस ‘गाली गुरु’ ने कैसे स्वयं श्राद्ध और पुनर्जन्म को अंधविश्वास घोषित किया है।
🎞️ 9. क्लिप्स: आचार्य प्रशांत द्वारा श्राद्ध को ‘अंधविश्वास’ और पुनर्जन्म को ‘मिथक’ बताना
हमने यह तो देखा कि उनके शिष्य सार्वजनिक मंचों पर श्राद्ध का उपहास उड़ाते हैं। लेकिन इस गुट की जड़ें वहीं तक सीमित नहीं हैं। स्वयं आचार्य प्रशांत, जिनको यह गुट “ब्रह्मवाक्य” की तरह मानता है, श्राद्ध जैसे सनातन विषय को ‘superstition’ कह चुके हैं — और पुनर्जन्म की संकल्पना को भी सिरे से खारिज कर चुके हैं।
👇 नीचे हम उनके उन्हीं वीडियो को प्रस्तुत कर रहे हैं, जो इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं:
🔊 मुख्य बिंदु जो उन्होंने अपने क्लिप्स में कहे:
- “श्राद्ध एक भव्य अंधविश्वास है, इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं।”
- “इनके हिसाब से सोचा जाए उतना ही धर्म है बांकी समाज में जो चलता है श्राद्ध के नाम पर सब अन्धविश्वास है !“
- “धर्म केवल आत्मज्ञान है !”
⚠️ यहाँ प्रश्न यह नहीं है कि उनका मत क्या है —
प्रश्न यह है कि क्या किसी व्यक्ति को वैदिक परंपरा और श्रद्धा पर आधारित संस्कृति को खुलेआम ‘Superstition’ और अधार्मिक कहने का अधिकार है — और वह भी तब जब:
- वह स्वयं को वेदांताचार्य कहे,
- उससे लाखों लोग प्रभावित हों,
- और उसके अनुयायी धार्मिक प्रतीकों का मज़ाक उड़ाएँ।
🧾 स्मरण रहे:
🔹 हमने यह सभी क्लिप्स शोध के रूप में संकलित किए हैं।
🔹 ये बातें किसी गुप्त स्रोत से नहीं, उनके सार्वजनिक व्याख्यानों से ली गई हैं।
🔹 और इनका विश्लेषण केवल भावनात्मक नहीं, विधिक और वैज्ञानिक आधार पर किया जाएगा।
दरअसल इन स्वघोषित आचार्य की आदत है बिना प्रमाण के बात करने की | यहां हम धर्म के विषय में भी कुछ शास्त्रीय प्रमाण दे देते हैं ताकि लोग धर्म की व्यापकता को समझ सकें | आत्मज्ञान केवल एक पक्ष है | धर्म के अनेकों पक्ष हैं | उदाहरणस्वरूप :
छान्दोग्य उपनिषद् जो सामवेद का उपनिषद् है उसके 2/23/1 में दान को धर्म का आधारस्तम्भ कहा है :

इतना ही नहीं मनुस्मृति 1/108 में भी धर्म के बारे में कहा गया है-

अतएव श्रुति और स्मृति दोनों के द्वारा समर्थित होने के कारण श्राद्ध निश्चय ही धर्म है | इसको धर्म नहीं विश्वास कहने वाला स्वघोषित आचार्य स्वयं अंधविश्वास फैलाने वाला सिद्ध होता है !
🔬🧠 10. आत्मा और पुनर्जन्म पर वैज्ञानिक अनुसंधान – क्या विज्ञान अब आत्मा को स्वीकारने लगा है?
❌ गाली गुरु और उनकी मंडली का दावा:
आर्य प्रवीण और उनके शिष्य बार-बार यह दावा करते हैं कि आत्मा या पुनर्जन्म जैसी चीज़ें मिथक हैं। वे कह चुके हैं कि यह सब काल्पनिक धारणाएँ हैं जो इंसान की ‘शरीर केंद्रित भावनाओं’ से निकली हैं।
लेकिन आज आधुनिक विज्ञान – ख़ासकर क्वांटम भौतिकी, पैरा-साइकोलॉजी और थियोलॉजिकल फिजिक्स – आत्मा के अस्तित्व की संभावनाओं को गंभीरता से ले रहा है। यह केवल धार्मिक भावना नहीं रही — यह अब वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं और समीकरणों तक पहुँच चुकी है।
📘 शोधपत्र परिचय
शीर्षक: Three Dimensional Body-Mind-Spirit Worlds in Human Society and Extensive Quantum Theory in Theology
लेखक: Yi-Fang Chang, Department of Physics, Yunnan University, China
जर्नल: American Journal of Humanities and Social Sciences Research, 2024, Vol. 8(7), pp. 119–128

🔁 शोध के मुख्य बिंदु:
🌀 तीन-आयामी आत्मिक मॉडल:
चांग ने एक क्रांतिकारी मॉडल दिया है जिसमें शरीर (Body), मन (Mind), और आत्मा (Spirit) — तीनों को एक वैज्ञानिक फ्रेमवर्क में रखा गया है। इसमें हर इंसान की स्थिति को तीन संख्यात्मक विमाओं में मापा जा सकता है — भौतिक (B), मानसिक (M), और आत्मिक (S)।
🌈 आत्मा की पुनरावृत्ति की संभावना:
शोध में दावा किया गया है कि मृत्यु एक “क्वांटम पोटेंशियल बैरियर” है। अगर आत्मा की ऊर्जा इस बैरियर को पार कर जाए, तो “क्वांटम टनलिंग” के माध्यम से आत्मा का पुनर्जन्म संभव है। यानी, reincarnation एक संभाव्य वैज्ञानिक प्रक्रिया हो सकती है।
🔗 क्वांटम एंटैंगलमेंट और टेलीपोर्टेशन:
लेखक यह भी बताते हैं कि आत्मा और शरीर के बीच संबंध क्वांटम एंटैंगलमेंट के जैसे होते हैं। और यह भी संभव है कि मृत्यु के बाद आत्मा की जानकारी क्वांटम वेव के ज़रिए दूसरे अस्तित्व में ट्रांसफर हो।
⚛️ ज्योतिष और धर्म नहीं, अब भौतिक विज्ञान बोल रहा है!
शोध में यह निष्कर्ष है कि आत्मा को मात्र विश्वास नहीं, बल्कि “नॉन-मैटेरियल वेव फील्ड”, सोलिटॉन वेव, और थॉट फील्ड के रूप में मापा जा सकता है। आत्मा अब सिद्धांत नहीं, एक विज्ञानी अवधारणा बन चुकी है।
🚨 किस बात पर ध्यान दें:
- गाली गुरु ने जिन बातों को अंधविश्वास कहा, अब उन्हें विज्ञान संभावित मान रहा है।
- यह शोध केवल दर्शन नहीं, बल्कि सात वैज्ञानिक मॉडल प्रस्तुत करता है — जैसे क्वांटम टनलिंग, नॉनलाइनर वेव्स, वॉर्महोल, ब्लैक होल रेडिएशन, थॉट फील्ड, क्वांटम एंटैंगलमेंट, आदि।
- इसका सीधा अर्थ यह है कि गाली गुरु की ‘myth’ वाली थ्योरी खुद मिथक साबित हो रही है।
📸 ऑन-स्क्रीन Flash Questions:
❓ क्या आर्य प्रशांत यह सिद्ध कर सकते हैं कि आत्मा का अस्तित्व और पुनर्जन्म असंभव है, जब विज्ञान इसके लिए 7 मॉडल प्रस्तुत कर चुका है?
❓ क्या “Superstition” चिल्लाने से कोई सिद्धांत विज्ञान से गायब हो जाता है?
❓ क्या MHCA 2017 और IT Act के अंतर्गत वैज्ञानिक तथ्यों को झूठा कहना, मानसिक भ्रम पैदा करना नहीं है?
🔬 11. शोधपत्र 2 – आत्मा और क्वांटम विज्ञान
“Does Quantum Mechanics Predict the Existence of Soul?” – Hassan H. Mohammed
आर्य प्रशांत और उनके शिष्य आत्मा और पुनर्जन्म जैसी बातों को “पाखंड” और “मिथक” कहते हैं, लेकिन आधुनिक विज्ञान धीरे-धीरे उन्हीं बातों की ओर संकेत करने लगा है।
📘 शोध का सार:
यह शोधपत्र बताता है कि आत्मा और चेतना कोई काल्पनिक अवधारणा नहीं है, बल्कि क्वांटम भौतिकी में इसके स्पष्ट वैज्ञानिक संकेत मिलते हैं।
👨🔬 लेखक:
प्रोफेसर हसन एच. मोहम्मद (Physics Dept., University of Basrah) — 40 से अधिक शोधपत्रों के लेखक और 4 पेटेंट के धारक।
🧠 प्रमुख निष्कर्ष:
- क्वांटम यांत्रिकी में ‘सजग पर्यवेक्षक’ की आवश्यकता है — यानी चेतना के बिना ब्रह्मांड के कणों का व्यवहार तय नहीं होता।
- Microtubules जैसे मस्तिष्क संरचनाएं चेतना के साथ गहरे क्वांटम सम्बंध रखती हैं।
- Time Reversal (समय की उलटी दिशा) जैसे क्वांटम प्रयोग बताते हैं कि भौतिक घटनाओं से परे भी कुछ है — यानी मेटाफिज़िक्स = रियलिटी का हिस्सा।
- Zero Point Field (ZPF) – यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा क्षेत्र आत्मा और चेतना की जानकारी को रखता है, और हमारे दिमाग उससे जुड़े रहते हैं।
- Panpsychism के समर्थन में — चेतना को पदार्थ की मौलिक विशेषता बताया गया है, जो ब्रह्मांड के हर स्तर पर मौजूद है।
- Stochastic Electrodynamics (SED) सिद्ध करता है कि जब मस्तिष्क ZPF से जुड़ता है, तब चेतना उत्पन्न होती है — यह आत्मा के अस्तित्व का गणितीय और भौतिक प्रमाण है।
📌 निष्कर्ष:
पारंपरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण जहाँ आत्मा को नकारते रहे, वहीं आधुनिक क्वांटम मॉडल — जैसे कि डेविड बॉहम, कार्लो रोवेली, टेगमार्क, और पेनरोस — अब स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि चेतना और आत्मा ब्रह्मांड की संरचना में शामिल हैं।
📄 पूरा शोधपत्र पढ़ें:

🎭 12. समाज को गाली, लेकिन सम्मान लेते समय शर्म नहीं? – आचार्य प्रशांत की आत्मविरोधी नीति
वह व्यक्ति जो अपने अनुयायियों से कहता है —
“समाज में फिट नहीं होना चाहिए!”
👉 वही व्यक्ति जब किसी सरकारी संस्था, अंतरराष्ट्रीय मंच या कॉलेज द्वारा पुरस्कार देता है — तो बिना शर्म के मंच पर जाता है, फोटो खिंचवाता है, भाषण देता है — और समाज की सराहना लेता है।

😶 यह कैसी वैचारिक दोमुंहापन?
- जब वह पुरस्कार लेता है — तो क्या यह समाज से “फिट” नहीं होना कहलाएगा?
- जब वह संस्था को धन्यवाद देता है — तो क्या वह समाज से मान्यता नहीं ले रहा?
- जब उसका फोटो सोशल मीडिया पर प्रचारित होता है — तो क्या वह “समाज की Validation” नहीं है?
👉 क्या यही वो ‘फ़्रेम’ नहीं है, जिससे वह दूसरों को बाहर निकलने की सलाह देता है?
📢 हमने वीडियो में स्पष्ट पूछा है:
“अगर समाज में फिट होना पाखंड है, तो अवॉर्ड लेते वक़्त आपको शर्म क्यों नहीं आती?”
“क्यों नहीं कहा कि — ये अवॉर्ड तो Conditioning का जाल है, मैं नहीं लूंगा?”
“क्या अब भी आप वही उपदेश देंगे: ‘समाज से कुछ मत लो!’ या अब उपदेश भी पुरस्कार के अनुसार बदलता है?”
💥 मनोवैज्ञानिक प्रश्न:
🔎 क्या यह आत्मग्लानि का अभाव है?
🔎 क्या यह Moral Disengagement का लक्षण है, जिसमें व्यक्ति अपने कथनों और कर्मों के बीच के विरोधाभास को भावनात्मक रूप से महसूस नहीं कर पाता?
🔎 या यह Narcissistic Rationalization है — जहाँ जो मैं करूं वह सही है, और बाकी सब गलत?
⚖️ यही वह बिंदु है जहाँ वैचारिक विरोध कानूनी और सामाजिक जिम्मेदारी की मांग करने लगता है।
आगे हम फिर से उठाएँगे कानूनी पहलू —
📌 क्योंकि यह केवल वैचारिक विवाद नहीं, जनभावनाओं का अपमान है।
⚖️ 13. कानूनी धाराएँ और FIR की अपील – अब समय है सामाजिक जवाबदेही का
जब एक व्यक्ति या उसका अनुयायी सार्वजनिक मंचों पर सदियों पुरानी परंपराओं जैसे श्राद्ध, पिंडदान, और पूर्वजों की स्मृति को “अंधविश्वास”, “गौरैया-कौवा ड्रामा”, या “सोशल कंडीशनिंग” कहकर मज़ाक बनाते हैं — तो यह केवल धार्मिक अपमान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आघात है।
📜 सम्भावित कानूनी धाराएँ
🔴 आईटी अधिनियम 2000 की धारा 67:
अश्लील या आक्रामक सामग्री का इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रचार या प्रकाशन।
❓ क्या सार्वजनिक रूप से हिन्दू रीति-रिवाजों को “सुपरस्टिशन” कहना इसी श्रेणी में नहीं आता?
🔴 आईपीसी की धारा 295A:
किसी धार्मिक आस्था का जानबूझकर अपमान करना।
❓ क्या पिंडदान और श्राद्ध को “बेकार”, “गौरैया का खेल”, “कोई आत्मा नहीं होती” कहना इस श्रेणी में नहीं आता?
🔴 आईपीसी की धारा 153A:
समुदायों के बीच वैमनस्य फैलाना।
❓ क्या ‘श्रुति-स्मृति’ के नाम पर हिन्दुओं में विभाजन और विद्वेष फैलाना इसी धारा के अंतर्गत नहीं आता?
🔴 आईपीसी की धारा 505(2):
धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता, घृणा या द्वेष की भावना को उकसाना।
📢 हम जनता से अपील करते हैं:
🧾 यदि आपके पास वीडियो क्लिप्स, स्क्रीनशॉट्स, या इस ब्लॉग में दिये गए प्रमाण हैं — तो उसे नजदीकी थाने में लेकर जाएँ। FIR दर्ज कराएं।
📤 या साइबर क्राइम पोर्टल पर रिपोर्ट करें।
👉 https://cybercrime.gov.in
🚨 ये सिर्फ़ एक विचारधारा की आलोचना नहीं,
एक सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा का संघर्ष है।
🕉️ 14. निष्कर्ष – श्रद्धा और विज्ञान का मिलन?
एक ओर वह अनुयायी है जो पिंडदान जैसे कर्मकांडों को “कोरी कल्पना”, “कौवा गौरैया का ढोंग” कहता है। दूसरी ओर स्वयं को आचार्य कहने वाला व्यक्ति है जो आत्मा, पुनर्जन्म, और वेदों की मूल अवधारणाओं को “पर्सनल बिलीफ”, “सोशल कंडीशनिंग”, या “केमिकल प्रोसेस” तक सीमित कर देता है।
लेकिन इस ब्लॉग में हमने दिखाया—
🔬 वैज्ञानिक शोध पत्र ये दर्शाते हैं कि अंतरपीढ़ीय सहानुभूति (intergenerational empathy) केवल भावनात्मक विषय नहीं, मानव मस्तिष्क और व्यवहार का हिस्सा है।
📖 वाल्मीकि रामायण, नारद पुराण, और ऋग्वेद जैसी प्रतिष्ठित सनातन ग्रंथों में पिंडदान और श्राद्ध का वर्णन केवल धार्मिक कर्म नहीं, धर्म, कर्तव्य और सहानुभूति का रूप है।
⚖️ और जब इन धार्मिक परंपराओं को सार्वजनिक मंचों पर अपमानित किया जाता है, तो वो न केवल सांस्कृतिक आघात होता है, बल्कि भारतीय दंड संहिता और आईटी अधिनियम की गंभीर उल्लंघना भी हो सकती है।
📢 यह लड़ाई किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं…
यह उस सोच के खिलाफ है जो हज़ारों वर्षों के अनुभव-सिद्ध ज्ञान को ‘अंधविश्वास’ कहकर खारिज करना चाहती है, और खुद को ‘नए युग का मसीहा’ घोषित करती है।
🙏 निष्कर्ष:
🔹 श्राद्ध कोई अंधविश्वास नहीं, वह परंपरा है — प्रेम, श्रद्धा, जिम्मेदारी और सहानुभूति की।
🔹 और जो इसे गाली, तिरस्कार और घृणा से कुचलते हैं, वे स्वयं को धीरे-धीरे समाज से विमुख, संवेदनहीन और कानूनी संकटों में डालते जा रहे हैं।
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यह सिर्फ़ लेख नहीं, एक दस्तावेज़ है — सबूतों और शोध पत्रों से सुसज्जित।
🚨 इस लेख को पुलिस या साइबर क्राइम विभाग तक पहुंचाना चाहें — तो पूरा वैधानिक आधार इसमें मौजूद है।
🙏 जय धर्म, जय विज्ञान।