परिचय
श्रीमद्भगवद्गीता, जिसे हिंदू दर्शन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है, आज 700 श्लोकों के साथ हमारे समक्ष प्रस्तुत है। यह श्लोक 18 अध्यायों में विभाजित हैं और श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेशों का सार प्रस्तुत करते हैं। लेकिन महाभारत के भीष्म पर्व में उल्लेख मिलता है कि गीता में कुल 745 श्लोक थे। यह उल्लेख महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 47 में आता है, जहाँ एक विशेष श्लोक में गीता के श्लोकों की संख्या 745 बताई गई है। यह तथ्य हमारे सामने कई सवाल खड़े करता है – क्या वर्तमान में जो गीता प्रचलित है, वह वास्तव में संपूर्ण है? या समय के साथ कुछ श्लोक लुप्त हो गए हैं या हटाए गए हैं?
इस ब्लॉग पोस्ट में हम गीता के उस पुराने संस्करण को प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगे जिसमें ये खोए हुए श्लोक शामिल हैं। यह अध्ययन उन श्लोकों के महत्व को समझने में हमारी मदद करेगा, जिनकी अनुपस्थिति ने गीता के संदेश को किस हद तक प्रभावित किया है। साथ ही, इस पोस्ट के अंत में आपको गीता के इस दुर्लभ संस्करण की एक मुफ्त पीडीएफ लिंक भी प्रदान की जाएगी।
इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –
गीता में श्लोकों की संख्या का रहस्य
गीता के श्लोकों की संख्या का सवाल सदियों से धार्मिक और विद्वान चर्चा का विषय रहा है। यदि हम भीष्म पर्व के अध्याय 43 को पढ़ें, तो हमें पता चलता है कि गीता में कुल 745 श्लोकों का उल्लेख किया गया है।

मजे की बात ये है कि महाभारत के इस अध्याय में शुरू के पाँच श्लोकों को कुछ विद्वान् प्रक्षिप्त मानते हैं | भंडारकर ओरिएण्टल रिसर्च इंस्टिट्यूट (BORI) बड़ोदा के संशोधित महाभारत में इसे नहीं रखा गया है | हालाँकि गीताप्रेस ने इसे अपने संस्करण में संगृहीत किया है |
महाभारत के सारे संस्करणों को आप यहाँ से निःशुल्क डाऊनलोड कर सकते हैं –

लेकिन वर्तमान गीता में 700 श्लोक ही पाए जाते हैं। यह असमानता कई सवाल उठाती है:
- क्या श्लोकों की संख्या में यह अंतर केवल एक पाठ्यक्रम की त्रुटि है या यह किसी बड़े ऐतिहासिक बदलाव का परिणाम है?
- क्या इन लुप्त श्लोकों में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण उपदेश थे जो हमें वर्तमान गीता में नहीं मिलते?
- यदि ये श्लोक असल में थे, तो उनके हटने का क्या कारण हो सकता है?
यह प्रश्न न केवल गीता की प्रामाणिकता बल्कि उसकी पूर्णता पर भी संदेह उत्पन्न करते हैं। इसलिए, हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि इन 745 श्लोकों का उल्लेख केवल एक संयोग नहीं है, बल्कि इसके पीछे कुछ गहरी धार्मिक और ऐतिहासिक कारण हो सकते हैं।
अध्यायों की तुलना – 700 श्लोकों वाली और 745 श्लोकों वाली गीता
नीचे दी गई तालिका में हम गीता के वर्तमान और पुराने संस्करण के प्रत्येक अध्याय की तुलना करेंगे। इस तालिका में यह दर्शाया जाएगा कि किस अध्याय में कितने अतिरिक्त श्लोक हैं और वे कौन-कौन से हैं। इसके द्वारा हम यह जान पाएंगे कि गीता के मूल और वर्तमान संस्करण में क्या बदलाव हुए हैं।
| अध्याय | प्रचलित गीता | 745 श्लोकी गीता | अतिरिक्त श्लोक |
| 1 | 47 | 47 | |
| 2 | 72 | 81 | |
| 3 | 43 | 50 | |
| 4 | 42 | 44 | |
| 5 | 29 | 30 | |
| 6 | 47 | 52 | |
| 7 | 30 | 31 | |
| 8 | 28 | 39 | |
| 9 | 34 | 35 | |
| 10 | 42 | 42 | |
| 11 | 55 | 57 | |
| 12 | 20 | 20 | |
| 13 | 34 | 36 | |
| 14 | 27 | 27 | |
| 15 | 20 | 24 | |
| 16 | 24 | 24 | |
| 17 | 28 | 28 | |
| 18 | 78 | 78 |
प्रमुख अंतर और उनके अर्थ
अब हम कुछ मुख्य अंतर और उनके अर्थ पर चर्चा करेंगे। इन खोए हुए श्लोकों में कई गहरे विचार और दर्शन छिपे हुए हो सकते हैं जिनका वर्तमान गीता में अभाव है। यहाँ कुछ प्रमुख अंतर दिए जा रहे हैं जिनसे हमें यह समझने में सहायता मिल सकती है कि ये श्लोक क्यों महत्वपूर्ण थे:
- वेदांत के गहरे सन्दर्भ:
लुप्त श्लोकों में अधिकांश श्लोक तो प्राचीन उपनिषद् के अनुकरण ही हैं | कई मन्त्र जो ईशावास्योपनिषद, केनोपनिषद, मुण्डकोपनिषद और कठोपनिषद आदि ग्रंथों में आये हैं उन्हें ले लिया गया है | उदाहरणस्वरूप –
इस श्लोकी गीता के दूसरे अध्याय में यह श्लोक मिलता है –

यह केनोपनिषद (2/3) के इस मन्त्र से लिया गया है –

यह श्लोक प्रचलित गीता में नहीं है |
इसी तरह इसी दूसरे अध्याय में ये श्लोक आया है –

यह कठोपनिषद (2/3/14) के इस मन्त्र से लिया गया है –

दूसरे अध्याय का यह श्लोक देखिये –

यह मुण्डकोपनिषद 2/2/8 से लिया गया है –

छठे अध्याय में यह श्लोक ईशावास्योपनिषद (जो की यजुर्वेद का अंतिम अध्याय है ) उसका छठा मन्त्र है –
2. सत्त्व रज और तीन गुणों के कुछ प्रभाव और त्रिगुणातीत ब्रह्म
यदा कदा तीन गुणों के प्रभाव का भी वर्णन किया गया है और ब्रह्म तत्त्व से सम्बंधित कुछ विशद विचार भी आये हैं | ग्यारहवें अध्याय का यह श्लोक देख लीजिये जो अन्य संस्करणों में नहीं मिलते –

उसी तरह से पन्द्रहवें अध्याय के यह श्लोक अन्यत्र नहीं मिलते –

3. मुक्त इच्छा (Free Will) का रहस्य
गीता के अठारहवें अध्याय में आया है –

इससे संदेह हो जाता है कि मनुष्य के पास मुक्त इच्छा है या नहीं | इससे कई सारे दार्शनिक सवाल खड़े हो जाते हैं | उदाहरणस्वरुप क्या हम अपने कर्म के लिए उत्तरदायी नहीं हैं ? जब सब परमात्मा ही करवाते हैं तो फिर हमें सजा क्यों मिलती है ? क्या ब्रह्म अन्यायी है? इन समस्याओं का निराकरण हमने इस वीडियो में किया है –
इसीलिए गीता के इस विशेष संस्करण में केनोपनिषद (1/4-8) के इन मंत्रो को संकलित किया गया है जिससे यह सिद्ध होता है कि परमात्मा बस शक्ति देता है और इसलिए जीव के पास मुक्त इच्छा है –

इस गीता संस्करण की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता
यह पुराना गीता संस्करण हमें न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण संकेत प्रदान करता है। इसे समझना हमारी विरासत का हिस्सा है और यह हमें हमारी जड़ों की ओर लौटने की प्रेरणा देता है। वर्तमान समय में जहाँ अध्यात्म और धर्म के मूल स्रोतों से दूर हो जाने का खतरा है, ऐसे में यह संस्करण एक चेतावनी है कि हम अपनी विरासत को सहेज कर रखें।
इन श्लोकों का पुन: अध्ययन और शोध उन सभी धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों को फिर से स्थापित कर सकता है जो आज की दुनिया में कहीं खो से गए हैं। यह गीता संस्करण हमें यह सिखाता है कि हमें केवल श्लोकों का उच्चारण ही नहीं करना है, बल्कि उनके मर्म को समझना और अपने जीवन में आत्मसात करना है।
मुफ्त पीडीएफ लिंक
मैं इस दुर्लभ गीता संस्करण की मुफ्त पीडीएफ प्रदान कर रहा हूँ, ताकि आप स्वयं इसका अध्ययन कर सकें और अपने ज्ञान को बढ़ा सकें। यह गीता का अनमोल संस्करण न केवल हमारे धार्मिक ज्ञान को समृद्ध करेगा बल्कि हमारी विरासत को भी संरक्षित करने में सहायक सिद्ध होगा।

निष्कर्ष
भगवद गीता के इस दुर्लभ संस्करण का अध्ययन हमें हमारे धार्मिक ग्रंथों की गहराई और महत्ता को समझने का अवसर प्रदान करता है। इन खोए हुए श्लोकों का अध्ययन करने के बाद ही हम गीता के असली संदेश और उसके संपूर्ण दर्शन को समझ पाएंगे। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारें और आने वाली पीढ़ियों को भी इस धरोहर का महत्व समझाएं।
इस पोस्ट के माध्यम से आप एक महत्वपूर्ण पहलू को समझ पाएंगे कि केवल गीता का अध्ययन ही नहीं, बल्कि उसकी पूर्णता की खोज भी हमारे आध्यात्मिक ज्ञान को सुदृढ़ करने में सहायक है।
परिशिष्ट
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