जब IISc जैसे संस्थान भी भ्रम बेचने लगें…
कभी भारत की वैज्ञानिक प्रतिष्ठा के प्रतीक माने जाने वाले संस्थान — IISc Bangalore — आज एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ उन्हें पुनः परिभाषित करने की ज़रूरत है।
क्या आप सोच सकते हैं कि एक ऐसा संस्थान, जो विज्ञान और अनुसंधान की कसौटी पर खरा उतरने के लिए जाना जाता था, अब ऐसे प्रवचनकारों को मंच दे रहा है जो:
- न तो क्लिनिकल साइकोलॉजी में प्रशिक्षित हैं
- न ही मेडिकल साइंस की कोई डिग्री रखते हैं
- और न ही उनके पास किसी मान्यताप्राप्त शोध पत्र का प्रमाण है
फिर भी वे IISc जैसे संस्थान के मंच से रिलेशनशिप, मानसिक स्वास्थ्य और “toxicity” पर प्रवचन दे रहे हैं — मानो वो वैज्ञानिक नहीं, स्वयं ‘ज्ञान के अवतार’ हों।
हमेशा सोचा था कि IISc का मतलब होता है — Indian Institute of Science।
लेकिन अब लगता है इसका असली अर्थ है:
“Indian Institute of Scienceless Conman”
या
“गपोड़ी लाल अविद्या पीठ” — जहाँ बिना किसी वैज्ञानिक प्रमाण के गपोड़ी ज्ञान का महासम्मेलन चलता है।
जब भारत के शीर्ष विज्ञान संस्थान फॉल्स क्लैरिटी के पैकेज में अज्ञानता को प्लेट में परोसने लगें, तो ये सिर्फ उनकी नहीं — पूरे राष्ट्र की वैज्ञानिक चेतना की हार है।
इस ब्लॉग में हम केवल भावनाओं या विचारधाराओं के आधार पर बात नहीं करने वाले हैं। यहाँ प्रस्तुत किया जाएगा प्रत्यक्ष प्रमाण — वे शोध पत्र जो दुनिया के शीर्ष संस्थानों, मेडिकल जर्नल्स और यूनिवर्सिटीज़ द्वारा प्रकाशित किए गए हैं। इन रिसर्च पेपर्स के माध्यम से हम यह दिखाएंगे कि:
- बिना चिकित्सा योग्यता के मनोवैज्ञानिक सलाह देना कितना खतरनाक हो सकता है,
- कैसे “toxic relationship” जैसे गहरे विषयों पर सतही बातें मानसिक स्वास्थ्य को बिगाड़ सकती हैं,
- और क्यों ऐसे व्याख्यान एक छात्र के आत्मविश्वास, भावनात्मक स्थिरता, और सामाजिक सोच पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं।
प्रत्येक अनुभाग में एक-एक शोध पत्र रखा जाएगा — PDF डाउनलोड लिंक के साथ — ताकि आप स्वयं उसे पढ़ सकें, जांच सकें, और जान सकें कि IISc जैसे संस्थान किस स्तर की गैर-जिम्मेदारी में लिप्त हो चुके हैं।
क्योंकि अब समय आ गया है — केवल भावनाओं से नहीं, प्रमाण से बात करने का।
स्वघोषित आचार्य प्रशांत जी के IISc Bangalore में 2022 में दिए गए इन दो वक्तव्यों पर समीक्षा यहाँ प्रस्तुत किया गया है !


पहले वीडियो में उन्होंने यह कहने की कोशिश की है कि विवाह से मनोरोग होता है और रिश्तों की कोई ख़ास आवश्यकता नहीं है | हमें बस बस बचपन से यह भ्रम दे दिया गया है कि रिश्ते आवश्यक हैं |
दूसरे वीडियो में उन्होंने यह कहा है कि लक्ज़री की कोई आवश्यकता नहीं है | यह भी हमें एक भ्रम दे दिया गया है |
मज़े की बात है कि उन्होंने अपने वक्तव्य के लिए कोई प्रमाण उपस्थित नहीं किया है !
इस विषय में हमारा यह वीडियो द्रष्टव्य है –
🧠 शोध-पत्र 1: जब प्रमाणित डॉक्टर भी नुकसान कर सकते हैं… तो गपोड़ी ज्ञान कहाँ ले जाएगा?
📘 शोध पत्र: Negative Effects of Psychotherapy
✍️ लेखक: Dr. Bernhard Strauss, Institute of Psychosocial Medicine, Psychotherapy, and Psychooncology, University Hospital Jena, Germany
🏫 प्रकाशक: Cambridge University Press

🧠 शोध में क्या कहा गया है?
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित इस शोध में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि मनोचिकित्सा (Psychotherapy), जो आमतौर पर मानसिक स्वास्थ्य का समाधान मानी जाती है, कई मामलों में नकारात्मक प्रभाव डालती है — और वह भी पेशेवर, प्रमाणित और अनुभव-युक्त चिकित्सकों द्वारा दी गई चिकित्सा में।
244 लोगों पर किए गए राष्ट्रीय अध्ययन में यह सामने आया कि:
- 57.8% मरीजों ने कहा कि उन्होंने इलाज के दौरान या बाद में अप्रिय यादें फिर से अनुभव कीं।
- 30.3% को अप्रिय भावनाएँ आईं।
- 19.3% को यह भी नहीं समझ आया कि थेरेपी हो क्या रही है।
- और सबसे चौंकाने वाला: 16.8% मरीजों ने माना कि चिकित्सक ने उनके साथ वाक्यात्मक या भावनात्मक दुराचार किया।
यह सब हुआ प्रशिक्षित, डिग्री-धारी मनोचिकित्सकों के साथ। अब ज़रा सोचिए — अगर IISc जैसे संस्थान किसी ऐसे व्यक्ति को बुला लें जो न तो चिकित्सक है, न प्रमाणित, और फिर वह व्यक्ति पूरे सभागार को ‘उपदेश‘ देने लगे — तो उस “उपदेश” का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव क्या होगा?
😡 IISc का अतुलनीय कारनामा:
IISc ने एक ऐसे अध्यात्मिक प्रवचनकर्ता को मंच पर बुलाया जो:
- कोई medical या clinical psychology की डिग्री नहीं रखते,
- जिन्हें कोई प्रमाणित थैरेपिस्ट संघ नहीं मान्यता देता,
- और जो scientific research से इतनी दूरी बनाकर रखते हैं जितनी दूरी पृथ्वी और प्लूटो के बीच होती है।
और फिर भी वह रिलेशनशिप, मानसिक ट्रॉमा, और toxicity जैसे संवेदनशील विषयों पर “आत्मज्ञान की रौशनी में” सलाह बाँटते हैं।
🤯 हम यहाँ किस सवाल से टकरा रहे हैं?
- क्या IISc को यह रिसर्च पेपर पढ़ना नहीं आता?
- क्या संस्थान की नज़र में “ज्ञान” अब वैज्ञानिक प्रमाण नहीं, सिर्फ क्लैपिंग और आत्म-घोषणा से प्रमाणित होता है?
जब प्रमाणित विशेषज्ञ ही नुकसान पहुँचा सकते हैं, तो फिर “गपोड़ी लाल विशेषज्ञता” का क्या कहना? क्या IISc जैसे वैज्ञानिक संस्थान ने कभी यह जाँच की कि उनके मंच पर बोलने वाला किस प्रमाण के साथ मानसिक विषयों पर बोल रहा है?
क्या आज की “बाबा ब्रांड मार्केटिंग” में वैज्ञानिक सत्यता और नैतिक ज़िम्मेदारी बस एक दर्शनीय तमाशा बनकर रह गई है?
“जब प्रमाणित डॉक्टर भी खतरनाक साबित हो सकते हैं,
तब एक गपोड़ी गुरु को माइक्रोफ़ोन थमाना मानसिक स्वास्थ्य के खिलाफ अपराध नहीं तो और क्या है?”
क्या IISc भी अब International Institute of Swamis and Charlatans बनना चाहता है?
📌 इस ब्लॉग का उद्देश्य किसी को व्यक्तिगत रूप से बदनाम करना नहीं है, बल्कि यह दिखाना है कि कैसे “अप्रशिक्षित सलाह” मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचा सकती है — और जब ये सलाह किसी महान संस्थान के मंच से दी जाती है, तो उसका असर कई गुना घातक हो सकता है।
🧠 शोध-पत्र 2: मानसिक बीमारियाँ — और गपोड़ी समाधान?
📘 स्रोत: OCD-UK (Obsessive Compulsive Disorder Charity – UK)
🌐 पढ़ें मूल लेख


इस लेख में OCD-UK जैसे प्रतिष्ठित संगठन ने एक चेतावनी जारी की है — एक ऐसी चेतावनी जो IIT या NIMHANS जैसे संस्थानों को भी गंभीरता से लेनी चाहिए थी, लेकिन अब तो IISc जैसे संस्थान भी कान बंद कर के गपोड़ी ज्ञान की झपकी ले रहे हैं।
OCD-UK की रिपोर्ट कहती है:
- आजकल कई अप्रशिक्षित, गैर-प्रमाणित लोग खुद को “OCD Coach”, “Recovery Expert”, “Clinical Head” जैसे नामों से प्रचारित कर रहे हैं।
- इन लोगों के पास न कोई डिग्री है, न कोई मानसिक रोग चिकित्सा का अभ्यास।
- फिर भी ये हज़ारों पाउंड लेकर, सोशल मीडिया के फॉलोवर्स और झूठे टेस्टिमोनियल्स के बल पर लोगों को धोखा दे रहे हैं।
नतीजा?
- भावनात्मक आघात
- पैसे की बर्बादी
- और सबसे भयावह — भविष्य में इलाज लेने की इच्छा भी समाप्त हो जाना
😠 आर्य प्रशांत ने पर कुछ नहीं कहा है लेकिन यह क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि भारत में भी अब ऐसे लोग सामने आ रहे हैं:
- जो बिना किसी क्लिनिकल डिग्री, बिना मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग, और बिना किसी supervision के,
- बड़े-बड़े संस्थानों के मंच पर “रिलेशनशिप सलाह” दे रहे हैं,
- और दावा करते हैं कि “जो कहा, वही clarity” — मानो ज्ञान सिर्फ “तालियों से प्रमाणित” होता है।
यह ब्लॉग और शोध किसी व्यक्ति विशेष को OCD पर बोलने के लिए नहीं पकड़ता,
बल्कि यह दिखाता है कि बिना योग्यता के मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना
कितना विनाशकारी हो सकता है — चाहे विषय कोई भी हो।
😳 अब देखिए IISc का गज़ब का ज्ञानदायित्व:
IISc ने मंच सौंप दिया ऐसे “संत” को,
“toxic relationship” का परिणाम समझाते हैं,
और सलाह देते हैं |
ना तो CBT (Cognitive Behavioral Therapy) का नाम,
ना Exposure Therapy का ज़िक्र,
ना SSRIs (Selective Serotonin Reuptake Inhibitors) जैसे दवाओं का संदर्भ।
बस ज्ञानवापी टोन में बोले गए वाक्य —
और सुनने वाले युवा समझते हैं कि “toxicity” की clarity मिल गई!
यह शोध कहता है:
“Do not trust advice from people without mental health training — no matter how confident, popular, or clear they may sound.”
और हमारा कहना है:
अगर IISc जैसे संस्थान ऐसे लोगों को बुलाकर सार्वजनिक मंच देते हैं,
तो यह सिर्फ उनकी अकादमिक विश्वसनीयता नहीं,
बल्कि राष्ट्र की वैज्ञानिक चेतना का पतन है।
💞 शोध-पत्र 3: 85 साल का हार्वर्ड शोध और एक स्वघोषित “गुरु” की दो लाइनें!
यह रिसर्च इतिहास का सबसे लंबा चलने वाला longitudinal अध्ययन है।
1938 से लेकर अब तक की पीढ़ियों पर अध्ययन कर Harvard ने यह निष्कर्ष निकाला:
“Healthy relationships, more than wealth or fame, keep people happy and healthy.”


यानि — अच्छे रिश्ते = दीर्घकालिक सुख और मानसिक स्वास्थ्य।
अब ज़रा आर्य प्रशांत के प्रवचन देखिए:
- “शादी जीवन में तनाव देती है”
- “रिश्तों की आवश्यकता नहीं”
- “तुम्हें बचपन से रिलेशनशिप के झूठ में पाला गया है”
और ये ज्ञान, किसी शोध पर नहीं — गप्पों और अंधभक्तों की तालियों पर आधारित है।

😡 हार्वर्ड बनाम गपोड़ी दर्शन
85 साल का डेटा कहता है — रिश्ते ज़रूरी हैं
गपोड़ी वेदांत कहता है — रिश्ते फालतू हैं
अब आप तय कीजिए —
IISc किसके साथ खड़ा है? विज्ञान के साथ या गप्पो के साथ?
🧬 शोध-पत्र 4: जब प्यार से निकलता है हार्मोन — ऑक्सीटोसिन की कहानी
📘 शोध पत्र: Oxytocin Pathways and the Evolution of Human Behavior
🏫 University of North Carolina School of Medicine & Northeastern University Collaboration✍🏻 लेखिका: C. Sue Carter
🏛 प्रकाशन: Annual Review of Psychology, 2014

इस शोध में बताया गया है कि इंसान कोई अकेली मशीन नहीं है, बल्कि एक सामाजिक प्राणी है — जिसकी भावनात्मक भलाई, शारीरिक स्वास्थ्य और मानसिक स्थिरता का गहरा रिश्ता होता है उसकी रिश्तों से जुड़ाव की गुणवत्ता से।
यह जुड़ाव वैज्ञानिक रूप से एक हार्मोन के ज़रिए संचालित होता है, जिसे कहते हैं ऑक्सीटॉसिन। जब इंसान को किसी रिश्ते में सुरक्षा, सहानुभूति, और विश्वास का अनुभव होता है, तब यह हार्मोन स्वतः स्रावित होता है, जो शरीर को:
✅ शांत करता है
✅ तनाव कम करता है
✅ हृदय को सुरक्षित रखता है
✅ और घाव तक भरने में मदद करता है।
इस शोध में यह भी बताया गया है कि ऑक्सीटॉसिन का विकास इंसानी मस्तिष्क के न्योकॉर्टेक्स के साथ हुआ, जिससे भाषा, भावना, और दीर्घकालिक देखभाल जैसी क्षमताएँ विकसित हुईं।
अब ज़रा सोचिए, जब आप रिश्तों को “बोझ” या “बंधन” बताने वाले किसी अज्ञानी को सुनते हैं, जो विज्ञान का सहारा लेकर रिश्ता-विरोधी प्रचार करता है — तब वह व्यक्ति सीधे-सीधे मानव व्यवहार के विकासात्मक विज्ञान और न्यूरोबायोलॉजी के खिलाफ बोल रहा होता है। और सबसे बड़ी बात, उसके पास न कोई मनोविज्ञान की डिग्री होती है, न कोई शोध अनुभव।
ऐसे लोग वेदांत की आड़ में विज्ञान को नकारते हैं और मानव सभ्यता के मूल स्तंभ—रिश्तों—को ही संदेह के घेरे में डालते हैं।
👉 अगली बार जब कोई कहे कि “रिश्ते सिर्फ क्लेरिटी में रुकावट हैं”, तो उन्हें यह रिसर्च दिखाइए… और कहिए, ऑक्सीटॉसिन की गोली खाओ और कुछ लगाव सीखो! 😄
💑 शोध-पत्र 5: सैकड़ों लोगों पर किया गया शादी और खुशी का सबसे बड़ा अध्ययन
📘 शोध पत्र: The Case for Marriage
🏫 University of Chicago, Department of Human Development


कॉपीराइट के कारण इस पुस्तक/शोध को यहाँ उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है |
शोध कहता है:
- विवाहित लोग औसतन अविवाहित लोगों से ज़्यादा संतुष्ट और मानसिक रूप से स्थिर होते हैं
- यह अध्ययन किसी “इमोशनल अंदाज़े” पर नहीं, हज़ारों प्रतिभागियों पर आधारित है
लेकिन IISC और उनके आमंत्रित संत कहते हैं:
“शादी तो illusion है। भ्रम है। toxicity है।”
कौन-सा भ्रम ज़्यादा खतरनाक है — शादी का या इस तरह के प्रवचनों का?
💰 शोध-पत्र 6: शादी और महिलाओं की आर्थिक स्थिरता
📘 शोध पत्र: Marriage, Assets and Savings
🏫 The Institute for Social and Economic Research

इस गहन शोध में यह प्रमाणित किया गया है कि:
- विवाहित महिलाएं अविवाहित महिलाओं की तुलना में औसतन अधिक संपत्ति अर्जित करती हैं।
- उनके पास अधिक संचित संपत्ति (assets) और बेहतर दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता होती है।
- शादी, विशेष रूप से यदि वह स्थायी हो, एक प्रकार की आर्थिक बीमा की तरह कार्य करती है।
🧨 अब सवाल उठता है — IISc जैसे संस्थान किन ‘स्पीकरों’ को बुला रहे हैं?
क्या ऐसे वक्ताओं को जिन्होंने:
❌ किसी भी प्रकार की आर्थिक योजना, सामाजिक विज्ञान या मनोविज्ञान की औपचारिक शिक्षा नहीं ली?
❌ जिनकी बातें केवल “रिलेशनशिप illusion है”, “बन्धन तोड़ो”, “शादी बोझ है” जैसे नारों पर आधारित हैं?
और वह भी कोई शोध या सांख्यिकीय प्रमाण दिए बिना?
🤯 विचार कीजिए — जब कोई लाखों युवा इस तरह की बातों को सत्य मान लेते हैं:
“शादी करने से clarity खत्म हो जाती है।”
“रिलेशनशिप में कोई growth नहीं होती।”
“संपर्क तो bondage है।”
📉 और फिर परिणाम?
- अविश्वास, अकेलापन और आर्थिक अनिश्चितता
- महिलाओं का आर्थिक जोखिम और asset gap
- और उस पर तुर्रा ये कि इसे “आध्यात्मिकता” का नाम दिया जाए!
इस शोध से स्पष्ट होता है:
“शादी केवल एक सामाजिक समझौता नहीं, बल्कि महिलाओं के लिए वित्तीय स्थिरता का आधार है।”
तो IISc से यह प्रश्न पूछना तो बनता है:
“आप किस आधार पर ऐसे रिश्ताविरोधी वक्ताओं को बुला रहे हैं जो वैज्ञानिक शोध को पूरी तरह नकारते हैं?”
या फिर अब आपका नाम “Indian Institute of Scienceless Clairvoyance” रख दिया जाए?

इस वीडियो में आर्य प्रशांत ने कहा है कि लक्ज़री आदि की कोई आवश्यकता नहीं है | सवाल यह नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं, बल्कि यह है कि क्या वे किसी मानसिक स्वास्थ्य या सामाजिक विज्ञान के शोध से यह प्रमाण दे पा रहे हैं? या फिर यह महज़ उनका निजी मत है जिसे वैज्ञानिक मंच पर “ज्ञान” का चोला पहना दिया गया है?
🧠 शोधपत्र #7: गरीबी केवल जेब खाली नहीं करती — दिमाग भी सुन्न कर देती है!
📘 शोधपत्र का नाम: Poverty Impedes Cognitive Function
✍🏻 लेखक: Anandi Mani (University of Warwick), Sendhil Mullainathan (Harvard University), Eldar Shafir (Princeton University), Jiaying Zhao (University of British Columbia)
🧪 प्रकाशन: Science Journal, Vol. 341, 2013

इस अत्यंत चर्चित शोध में वैज्ञानिकों ने दिखाया कि:
- गरीबी केवल एक सामाजिक स्थिति नहीं, बल्कि एक मस्तिष्क को कुंद कर देने वाला मानसिक बोझ है।
- वित्तीय समस्याओं में उलझे लोग अपने मस्तिष्क की कार्यक्षमता खो बैठते हैं — यानी कम ध्यान, कम स्मृति, और निर्णय लेने की क्षमता में गिरावट।
शोध के दो जबरदस्त निष्कर्ष:
- एक प्रयोग में जब गरीबों को आर्थिक संकट के बारे में सोचने को कहा गया, तो उनकी IQ में लगभग 13 अंकों की गिरावट देखी गई — जो पूरी रात नींद ना लेने के बराबर मानसिक थकान पैदा करता है।
- भारतीय किसानों पर किए गए अध्ययन में भी यही देखा गया — कटाई से पहले (जब पैसे नहीं थे) उनकी मानसिक क्षमता कमजोर थी, लेकिन कटाई के बाद (जब पैसा आया) वही किसान बेहतर निर्णय लेने लगे।
🧨 अब सोचिए — गरीबी में उलझा कोई युवा, जिसने मुश्किल से IISc तक पहुँच बनाई हो…
उसे वहाँ मिलता है एक ऐसा प्रवचनकर्ता:
- जो कहता है — “रिलेशनशिप illusion हैं”
- जो प्रचार करता है — “लाइफ में clarity attachment तोड़ने से आएगी”
- और जो खुद ना trained therapist है, ना सामाजिक वैज्ञानिक, ना आर्थिक शोधकर्ता
…फिर भी वह छात्रों को सभी विषयों पर उपदेश दे रहा है — वो भी बिना किसी अकादमिक प्रमाण के!
क्या यह उस छात्र के मन-मस्तिष्क पर अतिरिक्त बोझ नहीं डालता?
यह शोध साफ कहता है:
💥 गरीबी + भ्रम = मस्तिष्क की हत्या
और हम देख रहे हैं कि IISc जैसे संस्थान ऐसे उपदेशकों को मंच देकर
उन छात्रों पर और मानसिक भार डाल रहे हैं
जो पहले से ही सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक संघर्षों से जूझ रहे हैं।
आपके ज्ञान का दावा तब तक वैध नहीं हो सकता
जब तक वो सत्य, प्रमाण और तर्क से परखा ना गया हो।
यह शोधपत्र कहता है —
“गरीबी सोचने की क्षमता छीन लेती है।”
क्या यही है IISc की नई नीति?
“न विज्ञान चाहिए, न प्रमाण — गपोड़ी लाल महा सम्मलेन चलना है ?”
🔚 निष्कर्ष: बिना प्रमाण के गपोड़े आपको समझदार नहीं बनाता!
हमने इस ब्लॉग में कुल 7 प्रतिष्ठित शोधपत्रों के माध्यम से यह दिखाया:
- Cambridge University का शोध — बताता है कि प्रमाणित थेरेपिस्ट भी नुकसान पहुँचा सकते हैं, तो अप्रशिक्षित “गुरु” कितने खतरनाक हो सकते हैं?
- OCD-UK की रिपोर्ट — कैसे बिना डिग्री वाले कोच, “स्पीकर”, या “एक्सपर्ट्स” मरीजों का मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक शोषण करते हैं।
- Harvard Study of Adult Development — कहता है कि रिश्ते, और खासतौर पर गहरे मानवीय रिश्ते, दीर्घकालिक सुख का सबसे बड़ा आधार हैं।
- ऑक्सीटॉसिन शोध — बताता है कि भावनात्मक संबंध हमारे न्यूरोलॉजी और मानसिक स्वास्थ्य को संरक्षित करते हैं।
- Marriage-Happiness Study — विवाहशुदा लोग औसतन अधिक संतुष्ट होते हैं, अविवाहितों की तुलना में।
- Marriage-Asset Study (UK Institute for Social Research) — बताता है कि शादी करने से खासतौर पर महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है।
- Harvard का गरीबी पर शोध — बताता है कि वित्तीय संकट लोगों की सोचने की क्षमता तक गिरा देता है।
अब सवाल यह नहीं है कि “गपोड़ी स्पीकर” क्या कह रहे हैं।
सवाल यह है:
IISc जैसा वैज्ञानिक संस्थान, क्या अब स्पीकर को उनके “फॉलोवर्स की संख्या” से चुनता है या उनके शोध व प्रमाण से?
क्योंकि:
- ना उनके पास मनोविज्ञान की डिग्री
- ना न्यूरोलॉजी का ज्ञान
- ना कोई प्रमाणित प्रशिक्षण
- और ना ही कोई peer-reviewed publication
फिर भी वे:
- “Toxic relationships”,
- “Attachment”,
- “Clarity”,
- “Marriage gives neurosis”
जैसे गंभीर विषयों पर IISc जैसे मंच से प्रवचन देते हैं?
🧨 यह सिर्फ एक संस्था पर सवाल नहीं, पूरी अकादमिक साख पर है
क्या यही है भारत की वैज्ञानिक सोच?
जहाँ शोध की जगह “शब्दों की बाजीगरी” चले,
प्रमाण की जगह “तालियों की गूंज” हो,
और clarity का मतलब हो — जो बोले वही सही!
IISc को यह समझना चाहिए कि:
“Freedom of speech” does not mean freedom from responsibility.
जब आप छात्रों को ऐसे वक्ताओं के हवाले करते हैं,
तो आप केवल एक lecture नहीं, उनका भविष्य प्रभावित करते हैं।
❗समय आ गया है…
👉 छात्रों, अभिभावकों, और जागरूक नागरिकों को ये सवाल पूछने का:
- क्या IISc अब भी “Institute of Science” है या “Indian Institute of Scienceless Conman”?
- क्या भारत का शीर्ष विज्ञान संस्थान प्रमाण मांगने की जगह प्रवचन सुनने लगा है?
- क्या छात्रों को अब शोध की प्रेरणा देने वाले मिलेंगे, या भ्रम बेचने वाले?
🙏🏼 अंतिम पंक्तियाँ:
हम इस लेख के माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष को निशाना नहीं बना रहे,
बल्कि एक खतरनाक चलन को उजागर कर रहे हैं —
जहाँ प्रशिक्षणहीन, अप्रमाणित, और अवैज्ञानिक वक्ता
अब “आत्मज्ञान” की आड़ में मानसिक स्वास्थ्य, रिश्तों, और जीवन के मूल तत्वों पर प्रभाव डाल रहे हैं।
ये धर्मयुद्ध सिर्फ़ शब्दों से नहीं,
शोध और प्रमाणों की मशाल से लड़ा जाएगा।