प्राचीन भारतीय शास्त्रों का महत्व केवल उनकी पुरातनता में नहीं, बल्कि उनकी गहनता और सत्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में है। चाहे वह वेद हों, उपनिषद हों, भगवद गीता या रामायण, इन सभी ग्रंथों में एक अद्वितीय संदेश है—सत्य, धर्म और मानव जीवन के उच्चतम आदर्श। लेकिन अफसोस, आज के दौर में कुछ लोग इन शास्त्रों की व्याख्या अपने मनमाने तरीके से करने लगे हैं, बिना किसी ठोस शास्त्रीय प्रमाण के। इस लेख में हम इस खतरे पर प्रकाश डालेंगे कि कैसे शास्त्रों की गलत व्याख्या समाज के लिए हानिकारक हो सकती है।
शास्त्र प्रमाण की आवश्यकता
“अगर आपके पास शास्त्र प्रमाण नहीं है, तो आपकी बात गपशप के सिवा कुछ नहीं है।”
शास्त्रों की व्याख्या का अर्थ है शास्त्रों का गहन अध्ययन और उनके अनुसार बात करना। जो लोग केवल भाषणबाजी करते हैं, वे दरअसल गुमराह कर रहे होते हैं। वे एक शेर की तरह दहाड़ते हैं, लेकिन उनके पास अपने शब्दों का कोई प्रमाण नहीं होता। और नारद पुराण का कहना है –
प्रायश्चित्तं चिकित्सां च
ज्योतिषे धर्मनिर्णयम् ।
विना शास्त्रेण यो ब्रूयात्
तमाहु: ब्रह्मघातकम् ।।
नारद पुराण
पूर्व खण्ड 12/64
अर्थात् प्रायश्चित्त, चिकित्सा, ज्योतिष और धर्म निर्णय के विषय में जो बिना शास्त्र प्रमाणों के बोलता है उसे ब्रह्महत्यारा कहा जा सकता है |
इसलिए अगर आपके पास शास्त्रों का समर्थन नहीं है, तो आपकी सारी बातें केवल खोखली हैं।
व्याख्या या मनगढ़ंत कहानी ?
यहां एक मुद्दा आता है—कई लोग अपने अनुसार शास्त्रों की नई व्याख्याएं देने लगते हैं। कुछ लोग तो इतने आगे बढ़ जाते हैं कि वे शास्त्रों के असली संदेश को पूरी तरह से बदल देते हैं। यही वजह है कि हमें स्पष्ट रूप से शास्त्रों से प्रमाण देना चाहिए, ताकि कोई भी उसे गलत तरीके से प्रस्तुत न कर सके।
“क्या आपने कभी सुना है कि डॉक्टर बिना मेडिकल सर्टिफिकेट के मरीज का इलाज कर रहा हो? तो फिर शास्त्रों की बात करते समय प्रमाण क्यों नहीं दिया जाता?”
उदाहरण
इस वीडियो में हमने एक उदाहरण के साथ इस विषय को स्पष्ट किया है –
उदाहरणस्वरूप हाल ही में मैं किन्ही का वक्तव्य सुन रहा था – वो कह रहे थे कि केवल रामजी के गुणों को धारण करना चाहिए | उनकी भक्ति आदि करने से कुछ नहीं होगा | वास्तविक सत्य तो निर्गुण निराकार ब्रह्म ही है |
विश्लेषण –
यह व्याख्या सुनने में सही लगती है लेकिन शास्त्र विरुद्ध है | हम मानते हैं कि रामजी के अवतार से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए | भागवत महापुराण में उनके लिए कहा गया है – मर्त्यावतारास्त्विह मर्त्यशिक्षणम् (भागवत 5/19/5 ) |
लेकिन इसका अर्थ ये नहीं की केवल गुणों को धारण कर लें और भक्ति न करें तो काम चल जायेगा | तुलसीदासजी ने कवितावली के उत्तरकाण्ड में कहा है –
सुरराज सो राज-समाज, समृद्धि, बिरंचि, धनाधिप सो धन भो
पवमान सो, पावक सो, जस सोम सो, पूषन सो, भवभूषन भो॥
करि जोग, समीरन साधि, समाधि कै, धीर बड़ो, बसहू मन भो।
सब जाय, सुभाय कहै तुलसी, जो न जानकीजीवन को जन भो॥
अर्थ―इन्द्र का सा राज-समाज और ब्रह्मा की सी सम्पत्ति और कुबेर सा धन हुआ तो क्या? भव (जगत्) में मानी अथवा पवमान (पवन) सा और अग्नि यम, चन्द्र, सूर्य्य का सा या सबमें भूषण (सिरमौर) हुआ तो क्या? योग-समाधि करके, प्राण साधकर, बड़ा धीर हो गया या मन वश में हो गया तो क्या? तुलसी स्वभाव ही से कहते हैं कि यदि राम का दास न हुमा तो सब व्यर्थ हैं।
तुलसीदासजी फिर कहते हैं –
काम से रूप, प्रताप दिनेस से, सोम से सील, गनेश से माने।
हरिचंद से साँचे, बड़े विधि से, मघवा से महीप बिषै सुखसाने॥
सुक से मुनि सारद से बकता, चिरजीवन लोमस तेँ अधिकाने।
ऐसे भये तो कहा तुलसी जो पै राजिव-लोचन राम न जाने॥
अर्थ―काम सा रूप, सूर्य्य सा प्रताप, चन्द्र सा शील और गणेश जैसी प्रतिष्ठा (सब से पहिले पूजा) होती है। हरिश्चन्द्र से सत्यवत्का, ब्रह्मा से बड़े, इन्द्र से राजा और सुख पानेवाले, शुक से मुनि, शारदा से सेवक और लोमश से दीर्घायु हुए तो क्या? हे तुलसी! यदि कमल-नयन राम को न भजा।
भागवत महापुराण में तो ब्रह्मा जी साफ़ शब्दों में श्री कृष्ण की स्तुति करते हैं –
श्रेय:स्रुतिं भक्तिमुदस्य ते विभो
क्लिश्यन्ति ये केवल बोधलब्धये।
तेषामसौ क्लेशल एव शिष्यते
नान्यद्यथा स्थूलतुषावघातिनाम् ।।
10/14/4
अर्थात् भक्ति के बिना ही जो केवल ज्ञान के द्वारा ही ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें परिश्रम के अतिरिक्त कुछ हाथ नहीं लगता ठीक वैसे ही जैसे कि धान की भूसी कूटने वाले को चावल नहीं मिलता |
शास्त्रों की गलत व्याख्या का नुकसान
शास्त्रों की गलत व्याख्या समाज में भ्रम और अशांति फैलाती है। धर्म और शास्त्र समाज के लिए नैतिक दिशा-निर्देश होते हैं। लेकिन जब लोग अपने हिसाब से इनका अर्थ निकालने लगते हैं, तो असली संदेश कहीं खो जाता है। इससे न केवल धर्म का अपमान होता है, बल्कि समाज में अज्ञानता और अराजकता भी फैलती है।
“जब आपको शास्त्र समझ में नहीं आते, तो उनकी गलत व्याख्या करने से बेहतर है कि आप थोड़ा और पढ़ लें। ‘हाफ नॉलेज इज डेंजरस!’ आधा ज्ञान समाज को भटका सकता है।”
बिना प्रमाण के बात करना आसान, लेकिन उसका परिणाम घातक
लोग अक्सर बिना किसी प्रमाण के बड़े-बड़े विचार प्रस्तुत करते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि शास्त्रों में हर बात को समर्थन देने के लिए सटीक प्रमाण होता है। जब आप बिना प्रमाण के बात करते हैं, तो आप समाज को भटकाने का काम कर रहे होते हैं।
“आजकल के व्याख्याकारों की हालत यह है कि वे बिना शास्त्र पढ़े ही शास्त्रों पर भाषण दे रहे हैं। यह वैसा ही है जैसे बिना लाइसेंस के ड्राइविंग करना—सिर्फ एक दुर्घटना का इंतजार रहता है।”
शास्त्रों का गहन अध्ययन ही सही दिशा देता है
शास्त्रों का सही अध्ययन हमें न केवल सत्य की ओर ले जाता है, बल्कि हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझने में मदद करता है। इसलिए शास्त्रों की व्याख्या करते समय, हमें उनके मूल संदेश को ध्यान में रखना चाहिए और उसे प्रमाणित करने के लिए शास्त्र से सटीक उद्धरण देना चाहिए।
“जो लोग शास्त्रों का इस्तेमाल अपनी बात को साबित करने के लिए करते हैं, वे असल में शास्त्रों के खिलाफ अपराध कर रहे होते हैं। शास्त्रों का मतलब है सत्य, न कि आपकी व्यक्तिगत धारणाएं।”
निष्कर्ष
शास्त्रों की गलत व्याख्या से समाज को बचाने का एकमात्र तरीका है—शास्त्रों का गहन अध्ययन और सही प्रमाण का उपयोग। बिना प्रमाण के दिए गए विचार महज एक झूठ का जाल बनाते हैं। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम शास्त्रों की सच्चाई का पालन करें और उनकी सटीक व्याख्या करें।
“याद रखें, शास्त्रों का सही ज्ञान ही समाज का पथप्रदर्शक हो सकता है, और गलत व्याख्या सिर्फ अराजकता फैला सकती है। बिना शास्त्रीय प्रमाण के हर तर्क रेत पर बने घर की तरह होता है, जो किसी भी समय ढह सकता है। झूठे विद्वान सुंदर बोलते हैं, लेकिन उनकी बातों में शास्त्रों की आत्मा नहीं होती।।”
“शास्त्र प्रमाण से ही सत्य का उद्घाटन होता है—बाकी सब महज शब्दों का मायाजाल है।”