भूत-प्रेत और परलोक का विचार हमेशा से ही एक रहस्य और जिज्ञासा का विषय रहा है। जहां इसे कई लोग मात्र एक काल्पनिक अवधारणा मानते हैं, वहीं आधुनिक विज्ञान और शोध धीरे-धीरे इस दिशा में नई संभावनाओं की ओर इशारा कर रहे हैं। क्या यह संभव है कि भूत-प्रेत और परलोक जैसी चीजें सिर्फ मिथक नहीं बल्कि वास्तविकता का एक पहलू हों?
इस लेख में हम विज्ञान, चेतना और परलोक से जुड़े प्रमुख शोध और प्रयोगों की चर्चा करेंगे।
हम रसेल के टीपॉट से शुरुआत करेंगे, फिर विज़नर के माइंड-बॉडी प्रॉब्लम पर आधारित शोध को समझेंगे। इसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना के आफ्टरलाइफ एक्सपेरिमेंट, एरलेंडर हराल्डसन के भूतों पर शोध, फिलिप एक्सपेरिमेंट (1972) और एनफील्ड पोल्टरजाइस्ट (1977) की घटनाओं की गहन समीक्षा करेंगे।
प्रायः भूत प्रेत की बातें फिल्मों की कहानियों तक ही सीमित मानी जाती है | इस विषय में हमारी बहुत सारी फिल्मों के दृश्यों के साथ अनेक वैज्ञानिक प्रमाण समन्वित करने वाली यह वीडियो अवश्य देखें –
रसेल का टीपॉट: संशय की सीमा
रसेल का टीपॉट दर्शन में एक प्रसिद्ध दृष्टांत है, जिसे बर्ट्रेंड रसेल ने दिया था, जो यह समझाने की कोशिश करता है कि किसी चीज़ के अस्तित्व को खारिज करने के लिए केवल यह कहना पर्याप्त नहीं है कि उसका प्रमाण नहीं है। बर्ट्रैंड रसेल ने कहा था:
“यदि मैं कहूं कि मंगल और पृथ्वी के बीच एक छोटा टीपॉट सूर्य की परिक्रमा कर रहा है, जिसे कोई भी दूरबीन नहीं देख सकती, तो इसका अस्तित्व सिद्ध करने का भार मुझ पर है, न कि उसे खारिज करने वालों पर।”
उनके हिसाब से भूत प्रेत आदि की बातें बकवास हैं क्योंकि उसके प्रमाण नहीं हैं | लेकिन क्या यह पूर्ण सत्य है ?
विज़नर का माइंड-बॉडी प्रॉब्लम
चेतना और भौतिक जगत के संबंध को समझने के लिए विज़नर का माइंड-बॉडी प्रॉब्लम महत्वपूर्ण है।
Arkadiusz Jadczyk के शोध पत्र Revisiting Wigner’s Mind-Body Problem में इस विषय पर गहन चर्चा की गई है। इस शोध में बताया गया है कि चेतना केवल मस्तिष्क की एक प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसके पीछे क्वांटम भौतिकी और हाइपरडायमेंशनल फिजिक्स का गहरा संबंध हो सकता है।
उन्होंने पोल्टरजाइस्ट जैसी घटनाओं को समझने के लिए सूक्ष्म ऊर्जा और सूचना प्रवाह की अवधारणा को पेश किया। यह शोध यह संकेत देता है कि हमें चेतना और भौतिकता के बीच के संबंधों को नए गणितीय मॉडल में समावेशित करना होगा।
इस शोध पत्र को आप यहाँ से डाऊनलोड कर सकते हैं –

दरअसल इस तरह के शोधों को तथाकथित बुद्धिजीवी दबाते रहते हैं ताकि सामान्य जन इसको नहीं जान पाए | इन छद्म बुद्धिजीवियों का पर्दाफाश इस शोध पत्र में किया गया है –

यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना का आफ्टरलाइफ एक्सपेरिमेंट (1997-2002)
डॉ. गैरी श्वार्ट्ज के यूनिवर्सिटी ऑफ एरिज़ोना आफ्टरलाइफ एक्सपेरिमेंट को इस विषय में मील का पत्थर माना जाता है। 1997 से 2002 के बीच उन्होंने मीडियम्स की क्षमताओं का परीक्षण किया।
इन प्रयोगों में मीडियम्स द्वारा मृत आत्माओं से संपर्क करने के दावे की सत्यता की जांच की गई।
चौंकाने वाली बात यह थी कि कई बार मीडियम्स ने ऐसी जानकारी दी जो वैज्ञानिक रूप से सत्यापित थी और जिसे वे सामान्य रूप से नहीं जान सकते थे।
डॉ. श्वार्ट्ज ने अपनी पुस्तक The Afterlife Experiments में इन प्रयोगों के परिणाम प्रकाशित किए। यह शोध आत्मा और परलोक के अस्तित्व की संभावना को प्रबल करता है। हालांकि इस शोध को आलोचना भी मिली, लेकिन इसके आंकड़े और परिणाम को पूरी तरह नकारा नहीं जा सका।

एरलेंडर हराल्डसन: भूतों पर शोध और ‘At the Hour of Death’
एरलेंडुर हराल्डसन एक प्रसिद्ध पैरासाइकोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने भूत-प्रेत और मृत्यु के निकट अनुभवों (Near-Death Experiences) पर गहन शोध किया। उनकी पुस्तक At the Hour of Death में उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों में आत्माओं और भूतों के अनुभवों को दस्तावेज़ किया है।
उनके शोध में स्वतंत्र गवाहों की कहानियों की समानता इस बात की पुष्टि करती है कि कई बार भूतों की घटनाएं वास्तविक हो सकती हैं।
हराल्डसन ने आत्माओं के दर्शन और परलोक के अनुभवों को साक्ष्य के रूप में पेश किया और इन्हें सांस्कृतिक सीमाओं से परे समान पाया।

इन्होने एक नया शब्द दिया है veridical hallucination | दरअसल कई लोग NDE (Near Death Experience) में मृत व्यक्तियों की आत्मा से मिलकर ऐसे सत्य उद्घाटित करते हैं जो सबको ज्ञात नहीं होता और उसकी सत्यता सिद्ध भी की गयी है | अब इसे वैज्ञानिक भूत प्रेत का अनुभव तो कह नहीं सकते और hallucination भी नहीं कह सकते | इसलिए नया शब्द गढ़ लिया है – veridical hallucination |

फिलिप एक्सपेरिमेंट (1972): चेतना की शक्ति
फिलिप एक्सपेरिमेंट, 1972 में कैनेडियन सोसाइटी फॉर साइकोलॉजिकल रिसर्च द्वारा आयोजित एक प्रसिद्ध प्रयोग था।
इस प्रयोग में शोधकर्ताओं ने एक काल्पनिक चरित्र ‘फिलिप’ की रचना की और समूह सत्रों में उसकी उपस्थिति को महसूस करने की कोशिश की।
कुछ सत्रों में मेज़ हिलने लगी और आवाजें सुनाई देने लगीं, जैसे फिलिप सच में मौजूद हो। यह प्रयोग सामूहिक चेतना (Collective Consciousness) की शक्ति को दर्शाता है और इस पर कई वैज्ञानिकों ने शोध किया है।

https://www.youtube.com/watch?v=X2lGPT2J1cc
एनफील्ड पोल्टरजाइस्ट (1977): सबसे चर्चित भूतिया घटना
एनफील्ड पोल्टरजाइस्ट 1977 में इंग्लैंड में हुआ एक प्रकरण है, जिसे आज तक की सबसे प्रसिद्ध भूतिया घटनाओं में से एक माना जाता है।
इस केस की सबसे ख़ास बात ये है कि इसके सभी दस्तावेज कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में सुरक्षित हैं |

इस मामले में बच्चों का हवा में उठना, फर्नीचर का अपने आप हिलना और दीवारों पर आवाजें सुनाई देना जैसी कई घटनाएं हुईं।
इस घटना की पुलिस और स्वतंत्र जांचकर्ताओं ने जांच की, और कई घटनाओं को अप्राकृतिक और अजीब माना।

निष्कर्ष: क्या भूत और परलोक मात्र कल्पना हैं?
इन सभी शोधों और प्रयोगों से यह स्पष्ट होता है कि भूत-प्रेत और परलोक की अवधारणा को केवल कल्पना कहकर खारिज करना सही नहीं होगा।
विज्ञान और चेतना के अध्ययन में प्रगति हमें उन सीमाओं के पार ले जा रही है, जहां आत्मा और भौतिक वास्तविकता का अंतर धुंधला हो जाता है।
तो अगली बार जब आप किसी अजीब घटना का अनुभव करें, तो याद रखें—विज्ञान भी अब कह रहा है कि शायद कुछ रहस्य वाकई वास्तविक हैं।